बिहार की राजनीति में हमेशा से ही बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है। लेकिन हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट मंत्री चिराग पासवान (Chirag Paswan) का एक बयान बिहार के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा रहा है। उन्होंने बिहार में बढ़ती आपराधिक घटनाओं को लेकर नीतीश सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा:
“बिहार में जंगलराज है, मुझे शर्म है ऐसी सरकार को समर्थन देने में।”
यह बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की आहट सुनाई देने लगी है, और यह निश्चित रूप से आने वाले दिनों में और भी गरमागरम बहस का विषय बनने वाला है।
क्या बिहार में ‘जंगलराज’ की वापसी हो रही है?
“जंगलराज” शब्द बिहार के लिए कोई नया नहीं है। 90 के दशक में लालू-राबड़ी शासन के दौरान कानून-व्यवस्था की बदहाली को इसी नाम से पुकारा जाता था। अपहरण, हत्या, और फिरौती के लिए आम जनता का भयभीत होना उस दौर की पहचान बन गई थी। नीतीश कुमार ने सत्ता में आने के बाद “सुशासन” का नारा दिया और कानून-व्यवस्था में सुधार को अपनी प्राथमिकता बताया। लेकिन चिराग पासवान का यह बयान सवाल उठाता है कि क्या बिहार एक बार फिर उसी भयावह दौर की ओर लौट रहा है?
चिराग पासवान के अनुसार, बिहार में अपराध पूरी तरह से बेकाबू हो गया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि या तो अपराधियों के साथ प्रशासन की मिलीभगत है, या फिर प्रशासन पूरी तरह से निकम्मा हो चुका है और बिहारियों को सुरक्षित रखना उनके बस से बाहर है। उनके इस बयान में एक गहरी निराशा और चिंता साफ झलकती है।
बढ़ते आपराधिक आंकड़े: चिंता का विषय
चिराग पासवान के बयान को सिर्फ एक राजनीतिक जुबानी जंग के तौर पर नहीं देखा जा सकता। आंकड़े भी कुछ हद तक उनकी बात को बल देते हैं। केंद्रीय मंत्री के बयान के समर्थन में, हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि बिहार में 2022 में 3.5 लाख अपराध हुए थे, जो पिछले साल की तुलना में 23.3% अधिक था। (स्रोत: Jansatta) वहीं, जून 2025 तक, बिहार में 1.91 लाख अपराध दर्ज किए गए हैं, जो 2024 में दर्ज किए गए आधे से भी अधिक हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।
बढ़ते अपराधों में शामिल हैं:
- हत्या
- लूट
- महिलाओं के खिलाफ हिंसा
- जबरन वसूली
ये घटनाएं न सिर्फ आम लोगों के मन में डर पैदा कर रही हैं, बल्कि राज्य के विकास में भी बाधक बन रही हैं। जब व्यापारी और आम नागरिक सुरक्षित महसूस नहीं करते, तो आर्थिक गतिविधियां भी प्रभावित होती हैं।
चिराग पासवान का बयान: सिर्फ आक्रोश या राजनीतिक रणनीति?
चिराग पासवान, जो खुद को “मोदी का हनुमान” बताते रहे हैं, का यह बयान सिर्फ आक्रोश नहीं, बल्कि एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है।
- वैकल्पिक नेतृत्व की भूमिका: चिराग पासवान खुद को बिहार में एक नए और युवा नेतृत्व के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। उनका “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” का नारा इसी दिशा में एक कदम है।
- भाजपा को संदेश: इस बयान के जरिए चिराग भाजपा को यह संदेश देना चाहते हैं कि यदि उन्हें बिहार में युवा वोटबैंक पर पकड़ बनानी है, तो उन्हें नीतीश कुमार की प्रशासनिक शैली पर पुनर्विचार करना होगा। यह एनडीए के भीतर सीट-शेयरिंग और मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर भी दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है।
- स्वतंत्र पहचान: चिराग अपनी पार्टी (लोजपा-रामविलास) की स्वतंत्र पहचान बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, जो नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू से अलग है।
आगे की राह और जनता की अपेक्षाएं
बिहार की जनता लंबे समय से ‘जंगलराज’ के चंगुल से निकलने का इंतजार कर रही है। सुशासन की उम्मीद में कई सरकारों को मौका दिया गया। चिराग पासवान का यह बयान एक गंभीर सवाल उठाता है कि क्या बिहार वाकई उस मुकाम पर पहुंच गया है, जहां “जंगलराज” की वापसी का डर सताने लगा है?
सरकार को चाहिए कि वह इन आरोपों को गंभीरता से ले और कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ठोस कदम उठाए। केवल बयानों से काम नहीं चलेगा, बल्कि धरातल पर बदलाव दिखना जरूरी है।