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प्रेम सागर का निधन: 84 की उम्र में ‘विक्रम और बेताल’ के निर्देशक ने दुनिया को कहा अलविदा

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प्रेम सागर का निधन 84 की उम्र में 'विक्रम और बेताल' के निर्देशक ने दुनिया को कहा अलविदा

भारतीय टेलीविजन के सुनहरे दौर को जिन्होंने अपनी कला से सजाया, उन महान फिल्ममेकर और सिनेमैटोग्राफर प्रेम सागर का 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। यह खबर मनोरंजन जगत के लिए एक गहरा सदमा है। वे न केवल दिग्गज निर्देशक रामानंद सागर के बेटे थे, बल्कि खुद भी एक असाधारण निर्माता और निर्देशक थे। उनका जाना एक युग के अंत जैसा है, लेकिन उनका काम, खासकर ‘विक्रम और बेताल’ जैसे शो, हमेशा हमारी यादों में ज़िंदा रहेंगे।

इस ब्लॉग पोस्ट में हम प्रेम सागर के जीवन, करियर, नेट वर्थ और उनके निधन की दुखद घटना पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

प्रेम सागर कौन थे? रामानंद सागर के बेटे की कहानी

प्रेम सागर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसकी जड़ें भारतीय सिनेमा में बहुत गहरी थीं। वे महान लेखक और निर्देशक रामानंद सागर के बेटे थे, जिन्होंने ‘रामायण‘ जैसा कालजयी सीरियल बनाकर भारतीय टेलीविजन का चेहरा बदल दिया। प्रेम सागर ने अपने पिता की विरासत को न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि उसमें अपनी प्रतिभा का भी रंग भरा। उन्होंने 1968 में पुणे के प्रतिष्ठित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से सिनेमैटोग्राफी की पढ़ाई की, जिससे उन्हें कैमरा और विजुअल कहानी कहने की कला में महारत हासिल हुई।

प्रेम सागर की मृत्यु: 84 की उम्र में निधन

31 अगस्त 2025 को, प्रेम सागर ने 84 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ समय से उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रहे थे। उनकी तबीयत खराब होने पर उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनका इलाज चल रहा था। दुखद बात यह है कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने के कुछ ही समय बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके निधन की खबर से पूरा कला जगत और उनके फैंस शोक में हैं। ‘रामायण’ में लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले सुनील लहरी ने भी सोशल मीडिया पर अपनी श्रद्धांजलि दी और इस दुखद खबर की पुष्टि की।

प्रेम सागर का करियर: ‘विक्रम और बेताल’ और ‘रामायण’ का सफर

प्रेम सागर का करियर उनके पिता रामानंद सागर के प्रोडक्शन हाउस ‘सागर आर्ट्स’ के साथ शुरू हुआ। उन्होंने कैमरे के पीछे रहकर कई यादगार प्रोजेक्ट्स को साकार किया।

  • सिनेमैटोग्राफर के रूप में: उन्होंने अपने पिता के साथ ‘रामायण’, ‘श्री कृष्णा’, और ‘अलिफ लैला’ जैसे ऐतिहासिक धारावाहिकों में बतौर सिनेमैटोग्राफर काम किया। उनका काम इतना शानदार था कि हर सीन दर्शकों के मन में बस गया। उन्होंने 1976 में आई फिल्म ‘चरस’ में भी सिनेमैटोग्राफर के रूप में काम किया था।
  • निर्देशक और निर्माता के रूप में: प्रेम सागर को ‘विक्रम और बेताल’ (1985) जैसे लोकप्रिय शो के निर्देशन और निर्माण के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। यह शो बच्चों से लेकर बड़ों तक, हर उम्र के दर्शकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ। इसमें राजा विक्रम और बेताल की कहानियों को बेहद ही मनोरंजक ढंग से पेश किया गया था।
  • अन्य प्रमुख कार्य: ‘विक्रम और बेताल’ के अलावा, उन्होंने ‘अलिफ लैला’, ‘काकभुषुंडी’, और ‘कामधेनु गौमाता’ जैसे कई सफल टीवी शो का भी निर्देशन और निर्माण किया। उनके निर्देशन में बने ये शो भारतीय टेलीविजन के स्वर्णिम युग का हिस्सा हैं।

उनका योगदान सिर्फ टीवी तक सीमित नहीं था। उन्होंने ‘1968 में आई ‘आंखें’ फिल्म में भी काम किया और अपने पिता द्वारा निर्देशित ‘पसंद अपनी अपनी’ जैसी फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रेम सागर की नेट वर्थ: एक सादगीपूर्ण जीवन

प्रेम सागर ने हमेशा एक सादगीपूर्ण जीवन जिया। वे लाइमलाइट से दूर रहना पसंद करते थे और अपनी निजी जिंदगी को सार्वजनिक नहीं करते थे। यही कारण है कि उनकी सटीक नेट वर्थ का कोई निश्चित आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। हालांकि, उनके दशकों लंबे करियर, ‘सागर आर्ट्स’ प्रोडक्शन हाउस में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका और कई सफल फिल्मों व टीवी शो के निर्माण को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उनकी संपत्ति करोड़ों में थी।

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लेकिन, उनकी असली दौलत उनके द्वारा बनाया गया शानदार काम था, जो आज भी लाखों लोगों के दिलों में जीवित है।

रामानंद सागर की विरासत को आगे बढ़ाना

रामानंद सागर ने ‘रामायण’ बनाकर भारतीय घरों में जो आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्रांति लाई, उसे प्रेम सागर ने अपनी मेहनत से आगे बढ़ाया। उन्होंने सागर आर्ट्स के बैनर तले कई ऐसे शो बनाए, जो न केवल मनोरंजन करते थे, बल्कि समाज को कुछ सिखाते भी थे। उन्होंने आधुनिक तकनीक और पारंपरिक कहानियों का ऐसा मिश्रण पेश किया, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया।

निष्कर्ष: एक महान कलाकार को श्रद्धांजलि

प्रेम सागर का निधन भारतीय मनोरंजन उद्योग के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने कैमरे के पीछे रहकर जो योगदान दिया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। ‘विक्रम और बेताल’ के निर्देशक के रूप में उन्होंने हमें ऐसी यादें दीं, जिन्हें हम हमेशा संजोकर रखेंगे। उनका जाना न केवल एक महान फिल्ममेकर का जाना है, बल्कि उस पीढ़ी का भी जाना है जिसने भारतीय टेलीविजन को एक नया आयाम दिया।

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