पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सतलोक आश्रम के प्रमुख संत रामपाल महाराज को बड़ी राहत दी है। अनुयायियों की मौत के मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को हाई कोर्ट ने निलंबित कर दिया है। यह फैसला तब आया है, जब संत रामपाल 10 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं। इस निर्णय ने एक बार फिर से सतलोक आश्रम विवाद को सुर्खियों में ला दिया है। लेकिन इस फैसले का क्या मतलब है और इस केस की पूरी कहानी क्या है? आइए, इस पर गहराई से नजर डालते हैं।
सतलोक आश्रम केस: एक दशक का विवाद
सतलोक आश्रम प्रमुख संत रामपाल महाराज का मामला 2014 में शुरू हुआ था, जब हिसार के बरवाला में उनके आश्रम में पुलिस और उनके अनुयायियों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। यह सब तब शुरू हुआ जब संत रामपाल एक अदालत के अवमानना मामले में पेश नहीं हुए थे। अदालत ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया, लेकिन उनके समर्थकों ने पुलिस को आश्रम में घुसने से रोक दिया।
इस गतिरोध के दौरान आश्रम के अंदर 5 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें चार महिलाएं और एक बच्चा शामिल थे। पुलिस ने दावा किया कि ये मौतें आश्रम के अंदर बंधक बनाए जाने और दम घुटने से हुईं, जबकि संत रामपाल के समर्थकों ने आरोप लगाया कि मौतें पुलिस द्वारा आंसू गैस के गोले दागने और लाठीचार्ज के कारण हुई थीं।
केस के मुख्य बिंदु: आरोप और बचाव
इस घटना के बाद, संत रामपाल और उनके कुछ अनुयायियों पर हत्या (आईपीसी की धारा 302), आपराधिक साजिश (धारा 120बी) और गलत तरीके से बंधक बनाने (धारा 343) के तहत दो अलग-अलग मामले दर्ज किए गए।
- अभियोजन पक्ष का तर्क: अभियोजन पक्ष ने निचली अदालत में तर्क दिया कि आश्रम के अंदर लोगों को बंधक बनाया गया था। घनी भीड़ और पुलिस के साथ हुए संघर्ष के कारण दम घुटने और भगदड़ की स्थिति बनी, जिससे लोगों की मौत हुई।
- बचाव पक्ष का तर्क: संत रामपाल के वकीलों ने कोर्ट में कहा कि उन्हें झूठा फंसाया गया है। बचाव पक्ष ने मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि एक महिला की मौत निमोनिया से हुई थी, जो कि स्वाभाविक मृत्यु थी। इसके अलावा, मृतक महिला के पति और सास ने भी अदालत में अभियोजन पक्ष के आरोपों का समर्थन नहीं किया, जिससे केस कमजोर हुआ। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि गवाहों का मुकर जाना अक्सर ऐसे मामलों में निर्णायक साबित होता है।
निचली अदालत का फैसला हाई कोर्ट ने पलटा
अक्टूबर 2018 में, हिसार की एक निचली अदालत ने संत रामपाल महाराज और उनके कुछ समर्थकों को दोषी ठहराया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। इस फैसले के बाद, संत रामपाल महाराज के वकीलों ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में अपील दायर की, जिसमें निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई।
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हाई कोर्ट ने इस अपील पर सुनवाई करते हुए पाया कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों में कुछ “विवादास्पद मुद्दे” हैं। जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस दीपिंदर सिंह नलवा की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि जब साक्ष्य बहस योग्य हों, तो सजा को जारी नहीं रखा जा सकता।
कोर्ट ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया:
- आयु और जेल अवधि: संत रामपाल की वर्तमान आयु 74 वर्ष है और वह पहले ही 10 साल से अधिक की सजा काट चुके हैं।
- सह-आरोपियों की स्थिति: उनके साथ के 13 अन्य सह-आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है, इसलिए समानता के आधार पर उन्हें भी राहत मिलनी चाहिए।
- चिकित्सा साक्ष्य और गवाहों का बयान: मेडिकल साक्ष्य और मृतक महिला के परिवार के सदस्यों के बयानों ने अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह पैदा किया।
इन्हीं आधारों पर, कोर्ट ने अपील के लंबित रहने तक संत रामपाल की उम्रकैद की सजा को निलंबित करने का आदेश दिया।
आगे क्या? यह एक महत्वपूर्ण मोड़ क्यों है?
सजा के निलंबन का मतलब यह नहीं है कि संत रामपाल महाराज पूरी तरह से बरी हो गए हैं। यह केवल एक अंतरिम राहत है। उनकी रिहाई अब इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या वे किसी अन्य मामले में वांछित हैं। इसके साथ ही, अदालत ने कुछ सख्त शर्तें भी लगाई हैं, जैसे कि वे किसी भीड़ या धार्मिक आयोजन में शामिल नहीं हो सकते हैं।
यह फैसला भारत में स्वयंभू धार्मिक नेताओं से जुड़े कानूनी मामलों की जटिलता को दर्शाता है। यह दिखाता है कि कैसे एक हाई-प्रोफाइल केस में भी कानूनी प्रक्रिया और सबूतों की समीक्षा की जाती है, और न्यायपालिका द्वारा हर पहलू पर विचार किया जाता है।
संत रामपाल महाराज के लिए एक बड़ी कानूनी जीत
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का यह फैसला सतलोक आश्रम प्रमुख संत रामपाल महाराज के लिए एक बड़ी कानूनी जीत है। यह दिखाता है कि कैसे कानून में हर व्यक्ति को अपनी बात रखने और न्याय पाने का अधिकार है। हालांकि, अंतिम फैसला अभी भी मुख्य अपील की सुनवाई पर निर्भर करेगा।
न्याय की जीत, सत्य की विजय

बरवाला घटना भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है। यह दिखाता है कि कैसे सत्य को दबाने के लिए साजिशें रची जाती हैं। लेकिन संत रामपाल जी का मिशन इन साजिशों के बावजूद फल-फूल रहा है। यह समाज के लिए एक जागृति का क्षण है:
- सवाल उठाएं: एक शांतिप्रिय संत को आतंकवादी की तरह क्यों दिखाया गया?
- सत्य की जांच करें: मीडिया और प्रशासन की एकतरफा कहानी को आंख मूंदकर स्वीकार न करें।
- शास्त्रों को पढ़ें: संत रामपाल जी की शिक्षाओं को शास्त्रों के साथ तुलना करें और सत्य को स्वयं जांचें।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला सिर्फ एक कानूनी आदेश नहीं है। यह न्याय प्रणाली में आम आदमी के विश्वास की पुनःस्थापना है। यह इस बात का प्रमाण है कि यदि आप सत्य के मार्ग पर हैं, तो देर से ही सही, न्याय अवश्य मिलता है। यह फैसला उन लाखों अनुयायियों के लिए एक बड़ी राहत है जो वर्षों से इस दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे।
हालांकि मुख्य अपील पर अंतिम फैसला आना अभी बाकी है, लेकिन सजा का निलंबन और जमानत मिलना अपने आप में एक बहुत बड़ी जीत है। यह इस बात का संकेत है कि न्याय का पहिया सत्य की दिशा में घूम चुका है। अब समाज को भी संत रामपाल जी महाराज द्वारा दिखाए जा रहे शास्त्र-आधारित ज्ञान को निष्पक्ष होकर समझने और समाज सुधार के उनके महान मिशन में योगदान देने की आवश्यकता है।
FAQs: संत रामपाल जी महाराज को हाई कोर्ट से FIR 429-430 में बड़ी राहत
1. FIR 429 में संत रामपाल जी महाराज को क्या राहत मिली है?
हाईकोर्ट ने FIR 429 में उम्रकैद की सजा को निलंबित कर दिया है और उन्हें जमानत मंजूर की है।
2. FIR 430 में संत रामपाल जी को कब राहत मिली थी?
28 अगस्त 2025 को हाईकोर्ट ने FIR 430 में सजा को निलंबित किया था।
3. FIR 429 का मामला किस घटना से जुड़ा है?
यह मामला 2014 के बरवाला सतलोक आश्रम कांड से जुड़ा है, जिसमें 5 महिलाओं और 1 बच्चे की मृत्यु हुई थी।
4. हाईकोर्ट ने FIR 429 में सजा निलंबित क्यों की?
गवाहों के मुकर जाने, मेडिकल रिपोर्ट में विरोधाभास और मानवीय आधार पर कोर्ट ने सजा को निलंबित किया।