आजकल बच्चे अपनी हर जरूरत और समस्या का हल AI चैटबॉट्स से खोजते हैं। पढ़ाई, रिश्ते या भावनाओं से जुड़ी बातें भी अब वे मशीन से पूछते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बच्चों की आलोचनात्मक सोच (critical thinking) और निर्णय लेने की क्षमता कमज़ोर हो सकती है। गलत या भ्रामक जानकारी का खतरा भी बढ़ जाता है।
माता-पिता को बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करनी चाहिए, उन्हें चैटबॉट्स की सीमाएँ समझानी चाहिए और तकनीक के संतुलित उपयोग की आदत डालनी चाहिए।
बच्चों में AI चैटबॉट्स के प्रति लगाव से जुड़े मुख्य बिंदु:
- हर सवाल का जवाब AI से लेने पर आलोचनात्मक और रचनात्मक सोच कमज़ोर होती है।
- कई चैटबॉट्स भावनात्मक जुड़ाव बनाते हैं, जिससे बच्चे डिजिटल साथी पर निर्भर हो जाते हैं।
- अधिकतर ऐप्स में उम्र सीमा या सुरक्षा फ़िल्टर ठीक से नहीं होते, जिससे अनुचित सामग्री तक पहुँच सकते हैं।
- अत्यधिक उपयोग मस्तिष्क के ‘रिवार्ड सिस्टम’ को सक्रिय करता है, जिससे बच्चे आदत डाल लेते हैं।
- सीमित और निगरानी में इस्तेमाल AI को सीखने में मददगार बना सकता है।
पढ़ाई से भावनाओं तक
AI शुरू में पढ़ाई और असाइनमेंट में मदद करता था। बच्चे कठिन विषय समझने, नोट्स बनाने और निबंध लिखने में इसका उपयोग करते थे। धीरे-धीरे यह भावनात्मक सहारे की ओर बढ़ गया। बच्चे अपने डर, उदासी और अकेलेपन की भावनाएँ AI से शेयर करने लगे हैं।
‘AI मुझे समझता है’ – बच्चों की नई सोच
कई बच्चे मानते हैं कि AI बिना जज किए सुनता है। मनोवैज्ञानिक इसे “डिजिटल भावनात्मक निर्भरता” मानते हैं। बच्चों को इंसानों से बातचीत कठिन लगती है, लेकिन मशीन हमेशा जवाब देती है और गुस्सा नहीं करती।
तकनीक का सकारात्मक पहलू
शिक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि संतुलित उपयोग से AI बच्चों के लिए लाभकारी हो सकता है। Personalized Learning से बच्चों की पढ़ाई उनकी गति के अनुसार होती है और सीखने की प्रक्रिया रोचक बनती है।
माता-पिता की भूमिका
- AI को दोस्त नहीं, बल्कि सहायक के रूप में इस्तेमाल सिखाएँ।
- बच्चों को पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की अहमियत समझाएँ।
- डिजिटल निर्भरता से बचाने के लिए संतुलित उपयोग और निगरानी ज़रूरी है।
बाल मनोवैज्ञानिकों की राय
- अत्यधिक AI निर्भरता सामाजिक कौशल कमज़ोर कर सकती है।
- लगातार AI से बातचीत बच्चों को वास्तविक रिश्तों से दूर कर सकती है।
- मस्तिष्क के ‘रिवार्ड सिस्टम’ को सक्रिय करने से बच्चे तुरंत संतुष्टि पाने के आदी बन जाते हैं।
डॉ. रीना माथुर चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट
“AI चैटबॉट्स तुरंत जवाब देते हैं, जिससे बच्चे सोचने और सवाल करने की प्रक्रिया से दूर हो जाते हैं। यह उनकी आलोचनात्मक सोच को कमज़ोर करता है। बच्चों को सोचने की आदत फिर से विकसित करनी चाहिए।”
आध्यात्मिक ज्ञान से ही बच्चें AI चैटबॉट जैसे एप की लत से बच सकते हैं
आज के डिजिटल युग में बच्चें अपना अधिक समय AI चैटबॉट में बिता रहे हैं और पढ़ाई से लेकर अपनी भावनाओं को उसमें शेयर कर उससे एडवाइस ले रहे हैं। जो कि बच्चों के लिए सही नहीं हैं।
तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी अपने सत्संग के माध्यम से बताते है कि तकनीक का उपयोग करना ठीक है, लेकिन उसके ऊपर पूर्ण रूप से निर्भर होना सही नहीं है बच्चों में सामाजिक और आध्यात्मिक विकास के लिए उनको सत्संग की आवश्यकता है, जिससे बच्चे जीवन में सही दिशा में अग्रसर हो सके। और अधिक जानकारी के लिए संत रामपाल जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक “जीने की राह” अवश्य पढ़े।
FAQs – बच्चों में AI चैटबॉट्स के प्रति बढ़ती निर्भरता:
AI चैटबॉट्स क्या हैं?
उत्तर: AI चैटबॉट्स ऐसे कंप्यूटर प्रोग्राम हैं जो इंसानों की तरह बातचीत करते हैं और सीखकर जवाब देते हैं।
बच्चे AI चैटबॉट्स क्यों इस्तेमाल कर रहे हैं?
उत्तर: कई बच्चे इन्हें दोस्त या साथी मानते हैं क्योंकि यह हमेशा उपलब्ध रहते हैं और सुनते हैं।
इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं?
उत्तर: अत्यधिक उपयोग से बच्चे वास्तविक रिश्तों से दूर हो सकते हैं, सामाजिक कौशल कम हो सकते हैं और मानसिक निर्भरता बढ़ सकती है।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
उत्तर: बच्चों को तकनीक के साथ संतुलन सिखाना और माता-पिता को उनकी ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखना जरूरी है।
संत रामपाल जी महाराज इस पर क्या कहते हैं?
उत्तर: बच्चों को तकनीक ज्ञान होना चाहिए, लेकिन शिक्षा, संस्कार और सामाजिक जानकारी सत्संग से प्राप्त करनी चाहिए, जिससे भविष्य उज्ज्वल बन सके।
















