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अथंगुडी टाइल्स (Athangudi Tiles) : केवल एक शिल्प नहीं बल्कि कारीगरी की विरासत है

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अथंगुडी टाइल्स केवल एक शिल्प नहीं बल्कि कारीगरी की विरासत है

अथंगुडी टाइल्स: आपको जानकर पता चलेगा कि पुरानी परमपराएं हमारे भारत की संस्कृति का परिचय देती हैं।चेट्टिनाड की शिल्पकला और स्थापत्य विरासत की चमकदार पहचान दक्षिण भारत की सांस्कृतिक धरोहरों में चेट्टिनाड क्षेत्र की कलात्मक परंपराएं आज भी जीवित हैं। उन्हीं में से एक है — अथंगुडी टाइल्स, जो न सिर्फ एक निर्माण सामग्री हैं, बल्कि एक जीवित कला हैं।

ये टाइल्स तमिलनाडु की मिट्टी, रंगों और हुनर का ऐसा मेल हैं, जो पारंपरिक घरों की पहचान बन गई हैं। दिखने में ये कला जितनी सुंदर है, उतनी ही मनमोहक भी है। रंग – बिरंगे रंगों की ये अनूठी कला मानव निर्मित कला है।

(1) अथंगुडी टाइल्स कलात्मक परंपरा के रूप में आज भी जीवित है जो भारत की संस्कृति को दर्शाती है।

(2) अथंगुडी टाइल्स मनमोहक कला तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के एक छोटे गांव अथंगुडी में की जाती है।

(3) इन टाइल्स को बनाने में हस्तनिर्मित तरीका, प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है।

(4) अथंगुडी टाइल्स का इतिहास 19वीं सदी से जुड़ा हुआ है और इसका इतिहास बहुत ही रोचक है।

(5)कई पुराने चेट्टीनाड घरों में ये टाइल्स 100+ वर्षों से सही हालत में देखने को मिलती हैं।

(6) अथंगुडी टाइल्स केवल एक शिल्प नहीं, बल्कि एक संस्कृति, परंपरा और कारीगरी की विरासत है।

अथंगुडी टाइल्स से आप क्या समझते हैं ?

यह एक मानव निर्मित कला है।अथंगुडी टाइल्स हाथ से बनाई जाने वाली पारंपरिक टाइल्स हैं, ये मनमोहक कला तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के एक छोटे से गाँव अथंगुडी में की जाती हैं। इनकी सुंदरता का कारण है  हस्तनिर्मित तरीका, प्राकृतिक रंगों का उपयोग और इसमें किसी भी प्रकार की मशीन या भट्ठी का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह एक पारंपरिक प्रक्रिया है। इन टाइल्स का  इतिहास बहुत ही रोचक है जो कि 19वीं सदी से जुड़ा हुआ है। 

जी हां जब चेट्टियार व्यापारी समुदाय ने बर्मी और यूरोपीय प्रभावों को स्थानीय कला में समाहित किया और इन्हें प्राकृतिक ढंग से विकसित किया। इन टाइल्स की रंगीनता, चमक और टिकाऊपन आज भी लोगों को आकर्षित करती है।ऐसा प्रतीत होता है जैसे इनको किसी मशीन या सांचे द्वारा निर्मित किया गया है।

आइए थोड़ा चेट्टिनाड की सांस्कृतिक विरासत और शिल्प परंपरा की विस्तार में जानकारी देते हैं?

चेट्टिनाड क्षेत्र का संक्षिप्त परिचय

चेट्टिनाड, तमिलनाडु का एक ऐतिहासिक क्षेत्र है, जो अपने विशाल हवेलियों, जटिल नक्काशी, और कलात्मक सज्जा के लिए जाना जाता है। यह क्षेत्र चेट्टियार समुदाय का घर है, जो ऐतिहासिक रूप से व्यापारी और बैंकिंग से जुड़े रहे हैं।

कलात्मक दृष्टिकोण

चेट्टिनाड की हवेलियाँ आज भी अपनी मोज़ेक टाइल्स, लकड़ी की नक्काशी, चाइनीज़ और यूरोपीय प्रभाव वाली सज्जा, और रंगीन काँच की खिड़कियों के लिए प्रसिद्ध हैं।

चेट्टियार समुदाय की भूमिका

यह समुदाय विदेशी व्यापार के दौरान अपने साथ कई विदेशी वास्तुशिल्प शैलियाँ लाया, और उन्हें स्थानीय शैली में ढालकर अद्भुत निर्माण कार्यों की शुरुआत की। अथंगुडी टाइल्स इसी विरासत का हिस्सा हैं, और आज भी पारंपरिक तरीके से उन्हीं परिवारों द्वारा बनाई जाती हैं।

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अथंगुडी टाइल्स कैसे बनाई जाती है ?

प्राकृतिक कलाएं मशीन निर्मित कार्य को पीछे कर देती हैं। इन टाइल्स की निर्माण प्रक्रिया पूरी तरह हाथ से होती है, जो न केवल कला का प्रदर्शन है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी है। इस प्रक्रिया के मुख्य चरण निम्न हैं:

  1. सांचे की तैयारी: काँच की समतल सतह पर धातु का सांचा रखा जाता है, जिसमें टाइल का डिज़ाइन उकेरा गया होता है।
  2. रंग एवं डिज़ाइन भरना: प्राकृतिक ऑक्साइड रंगों को विशेष मिश्रण में मिलाकर सांचे में डिज़ाइन के अनुसार भरा जाता है। रंग संयोजन अत्यंत सटीक होता है।
  3. मिश्रण डालना: डिज़ाइन पर सीमेंट, रेत और पानी का एक विशेष अनुपात में तैयार मिश्रण डाला जाता है।
  4. धूप में सुखाना: सांचे से टाइल्स निकालकर उन्हें कई दिनों तक धूप में सुखाया जाता है, जिससे वे मजबूत और चमकदार बनती हैं।
  5. प्रमुख डिज़ाइन प्रकार: फूल-पत्ती (फ्लोरल मोटिफ़्स),पारंपरिक ज्यामितीय आकृतियाँ एवं मोर, सूरज या मंदिर-शैली के पैटर्न
  6. विशिष्टता: इस प्रक्रिया में न तो मशीनों का प्रयोग होता है, न ही बिजली या भट्ठी का—अतः यह पूर्णतः पर्यावरण के अनुकूल (इको-फ्रेंडली) शिल्प है।

क्या आप ये हस्तकला युक्त टाइल्स की मुख्य खासियत जानते हैं ?

▪️ टिकाऊपन: ये टाइल्स वर्षों तक चलने वाली हैं। प्रमाण के लिए कई पुराने चेट्टिनाड घरों में ये टाइल्स 100+ वर्षों से सही हालत में देखने को मिलती हैं।

▪️ टाइल्स का अद्वितीयपन: ये कला मनमोहक और सुंदर है क्योंकि ये हाथ से बनती हैं, इसलिए हर टाइल्स में एक खास किस्म की “ह्यूमन टच” होती है, जो मशीन से बनी टाइल्स में नहीं मिलती।  टाइल्स की सुंदरता लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। 

▪️ पूर्णतः पर्यावरण के अनुकूल है: इन टाइल्स को बनाने में कोई भट्ठी नहीं, कोई धुआँ नहीं — सिर्फ धूप, मिट्टी और लोगों की अटूट मेहनत का रंग इन टाइल्स की बनावट को बहुत ही दुर्लभ बना देता है । ये प्रक्रिया प्रकृति के अनुरूप है।

▪️पारंपरिक रंग और चमक: प्राकृतिक रंगों के कारण इनकी चमक वर्षों तक बरकरार रहती है, और डिज़ाइन आंखों को लुभाते हैं।

▪️ रखरखाव आसान: ये टाइल्स साफ करने में आसान हैं और इनमें धूल या दाग जल्दी नहीं लगते। साफ करने में भी कठिनाई नहीं होती है। वर्षों तक रंग भी वैसा का वैसा ही रहता है।

आज के समय में अथंगुडी टाइल्स का महत्व बहुत ज्यादा है

आजकल heritage-style homes, eco-conscious architecture और slow living की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण, अथंगुडी टाइल्स को फिर से लोकप्रियता मिल रही है।इनकी अनूठी और  मनमोहक बनावट और पारंपरिक खूबसूरती के कारण अब यह टाइल्स विदेशों में भी निर्यात की जा रही हैं। 

पुरानी हवेलियों, मंदिरों और सांस्कृतिक भवनों के संरक्षण कार्यों में इनका उपयोग हो रहा है, जिससे ऐतिहासिक भवनों की आत्मा बची रहती है। यह शिल्प अभी भी स्थानीय कारीगरों द्वारा संचालित है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार मिलता है और परंपरा जीवित रहती है। ये टाइल्स सिर्फ सजावट नहीं, बल्कि संस्कृति की एक जीवंत अभिव्यक्ति हैं, जो पीढ़ियों से चली आ रही चेट्टिनाड की पहचान को आज भी संजोए हुए हैं।

अथंगुडी टाइल्स और भविष्य की राह 

अथंगुडी टाइल्स केवल एक शिल्प नहीं, बल्कि एक संस्कृति, परंपरा और कारीगरी की विरासत हैं। आधुनिक समय में जब टिकाऊ और पारंपरिक डिज़ाइन की माँग बढ़ रही है, तब यह टाइल्स न केवल अतीत की याद दिलाती हैं, बल्कि भविष्य की राह भी दिखाती हैं। अगर आप अपने घर या किसी प्रोजेक्ट में कुछ परंपरागत, सुंदर और टिकाऊ जोड़ना चाहते हैं — तो अथंगुडी टाइल्स एक बेहतरीन विकल्प हो सकती हैं।

यह टाइल्स की कला दर्शाती है कि मानवनिर्मित कार्यों के आगे मशीन निर्मित कार्य भी फीके पड़ जाते हैं। प्राकृतिक ढंग से साज – सज्जा और अटूट मेहनत इन टाइल्स की सुंदरता में बिना परिचय दिए ही दिखाई देती है।

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