बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak Jayanti) और चंद्रशेखर आजाद जयंती: राष्ट्रभक्ति और बलिदान की दो मिसालें

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Bal Gangadhar Tilak Jayanti in hindi

Bal Gangadhar Tilak Jayanti 2025: हर साल 23 जुलाई का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। यह वह दिन है जब हम दो ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, जिनकी दूरदर्शिता और बलिदान ने भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) और चंद्रशेखर आजाद जयंती की। ये दोनों ही महापुरुष भारत माता के सच्चे सपूत थे, जिन्होंने अपने-अपने तरीके से देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। आइए, इस खास दिन पर उनके जीवन और योगदान को करीब से जानते हैं।

भारत के दो अनमोल रत्न: बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आजाद

23 जुलाई का दिन हमें प्रेरणा देता है कि कैसे अलग-अलग विचारों और रास्तों के बावजूद, इन दोनों क्रांतिकारियों का लक्ष्य एक ही था – भारत की स्वतंत्रता। जहाँ लोकमान्य तिलक ने अपनी कलम, शिक्षा और “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा!” जैसे नारों से जन-जागरण किया, वहीं चंद्रशेखर आजाद ने अपनी निडरता, साहस और क्रांतिकारी गतिविधियों से ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक: “भारतीय अशांति के जनक”

बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak Jayanti 2025) का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था। उन्हें ‘लोकमान्य’ की उपाधि से नवाजा गया, जिसका अर्थ है “लोगों द्वारा स्वीकृत नेता”। ब्रिटिश सरकार उन्हें “भारतीय अशांति के जनक” कहती थी, जो उनके प्रभाव का एक प्रमाण है।

तिलक जी ने शिक्षा के माध्यम से राष्ट्रवाद की भावना जगाई। उन्होंने डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की और ‘केसरी’ (मराठी) और ‘मराठा’ (अंग्रेजी) जैसे समाचार पत्रों के माध्यम से ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की। उनके कुछ प्रमुख योगदानों में शामिल हैं:

  • स्वराज का नारा: तिलक जी का मानना था कि स्वशासन के बिना कोई भी वास्तविक प्रगति संभव नहीं है। उनका प्रसिद्ध नारा “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा!” आज भी करोड़ों भारतीयों को प्रेरित करता है।
  • गणेश उत्सव और शिवाजी जयंती का पुनरुद्धार: उन्होंने इन त्योहारों को सामाजिक एकता और राष्ट्रवादी भावना को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। यह एक अभिनव तरीका था, जिससे आम लोग स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ सके।
  • होम रूल लीग: एनी बेसेंट के साथ मिलकर उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत के लिए स्वशासन प्राप्त करना था।

तिलक जी ने समाज सुधार पर भी जोर दिया और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं का विरोध किया। उनका निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ, लेकिन उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।

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अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद: क्रांति की ज्वाला

चंद्रशेखर आजाद का जन्म भी 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गाँव में हुआ था। मात्र 14 वर्ष की आयु में ही वे असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे। जब उन्हें गिरफ्तार किया गया और मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, तो उन्होंने अपना नाम “आजाद”, पिता का नाम “स्वतंत्र” और पता “जेल” बताया। यहीं से वे चंद्रशेखर आजाद कहलाए।

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आजाद की क्रांतिकारी गतिविधियां ब्रिटिश सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई थीं। उनके कुछ अविस्मरणीय योगदान हैं:

  • हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA): काकोरी कांड (1925) के बाद, HRA में सक्रिय भूमिका निभाई और बाद में भगत सिंह और अन्य साथियों के साथ मिलकर HSRA की स्थापना की।
  • काकोरी ट्रेन एक्शन: 1925 में, उन्होंने रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काकोरी में एक ट्रेन से सरकारी खजाना लूटा, जिसका उद्देश्य क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना था। यह ब्रिटिश राज के खिलाफ एक सीधा और साहसी कदम था।
  • आत्मबलिदान: 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस मुठभेड़ के दौरान, आजाद ने खुद को गोली मार ली ताकि वे अंग्रेजों के हाथों जीवित न पकड़े जा सकें। उन्होंने प्रतिज्ञा ली थी कि वे कभी भी ब्रिटिश पुलिस के हाथों गिरफ्तार नहीं होंगे।

चंद्रशेखर आजाद का बलिदान भारत के युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गया। उनकी निडरता और मातृभूमि के प्रति उनका प्रेम अद्वितीय था।

प्रेरणा का संगम: एक साथ जयंती का महत्व

यह अद्भुत संयोग है कि दो महान स्वतंत्रता सेनानियों, जो विचारों में भिन्न लेकिन लक्ष्य में एक थे, का जन्म एक ही दिन हुआ। बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आजाद जयंती हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता संग्राम केवल एक विचार या एक व्यक्ति का प्रयास नहीं था, बल्कि यह विभिन्न विचारधाराओं और बलिदानों का एक संगम था। एक ओर तिलक ने राजनीतिक चेतना जगाई, वहीं दूसरी ओर आजाद ने सशस्त्र क्रांति की राह दिखाई। दोनों ने मिलकर भारत की आजादी की नींव को मजबूत किया।

आज जब हम एक स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं, तो यह इन जैसे अनगिनत बलिदानों का ही परिणाम है। 23 जुलाई को, आइए हम इन महापुरुषों के दिखाए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लें और एक मजबूत, समृद्ध और न्यायपूर्ण भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।

निष्कर्ष और आपका योगदान

बाल गंगाधर तिलक और चंद्रशेखर आजाद जयंती केवल एक अवकाश नहीं, बल्कि यह हमें अपने इतिहास, अपने मूल्यों और अपने स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक अवसर है। हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को समझना चाहिए।

आप इन महानुभावों की जयंती कैसे मनाते हैं? नीचे कमेंट्स में अपने विचार साझा करें और इस पोस्ट को अपने दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें ताकि वे भी इन वीर सपूतों के बारे में जान सकें!

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