भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अंतरिक्ष विज्ञान में नया इतिहास रचने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। संगठन अब एक ऐसे विशाल रॉकेट के विकास की तैयारी कर रहा है जिसकी ऊँचाई करीब 120 मीटर होगी–यानि किसी 40-मंजिला इमारत जितनी होगी। यह मेगा रॉकेट एक ही बार में 75,000 किलोग्राम (75 टन) तक का पेलोड अंतरिक्ष की निचली कक्षा (लो अर्थ ऑर्बिट) में स्थापित करने में सक्षम होगा।
ISRO के चेयरमैन डॉ. वी. नारायणन ने जानकारी दी कि इस सुपर-हैवी लॉन्चर की योजना भविष्य की बढ़ती ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है। उन्होंने कहा कि जब भारत का पहला रॉकेट बना था तो वह मुश्किल से 35 किलो का पेलोड ले जाने में सक्षम था। अब तकनीकी प्रगति के चलते ISRO ऐसा रॉकेट तैयार कर रहा है जो हजारों गुना ज़्यादा वज़न एक बार में अंतरिक्ष में पहुंचा सकेगा।
इस नए रॉकेट को अस्थायी तौर पर N1 सुपर-हैवी लॉन्च व्हीकल नाम दिया गया है। इसे न केवल उपग्रह प्रक्षेपण बल्कि भविष्य के बड़े प्रोजेक्ट्स–जैसे स्पेस स्टेशन, मानवयुक्त मिशन और चंद्र-मंगल की यात्रा के लिए भी तैयार किया जा रहा है। इसकी क्षमता इतनी विशाल होगी कि यह कई बड़े उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में भेज सकेगा।
इस समय भारत के लगभग 55 उपग्रह कक्षा में सक्रिय हैं। अगले तीन से चार वर्षों में इनकी संख्या तीन गुना होने की संभावना है। आने वाले समय में ISRO कई महत्वपूर्ण मिशन पर भी काम कर रहा है, जिनमें शामिल हैं:
•NAVIC सिस्टम के नए उपग्रह – स्वदेशी नेविगेशन प्रणाली को और मज़बूत बनाने के लिए।
•GSAT-7R उपग्रह – भारतीय नौसेना के लिए उन्नत संचार प्रणाली प्रदान करेगा।
•तकनीकी प्रदर्शन उपग्रह (TDS) – भविष्य की प्रौद्योगिकियों की जांच के लिए।
•अंतरराष्ट्रीय सहयोग मिशन – जैसे 6,500 किलो वज़न वाले अमेरिकी संचार उपग्रह का प्रक्षेपण।
यदि दुनिया के अन्य अंतरिक्ष दिग्गजों से तुलना करें तो ISRO का यह रॉकेट सीधे तौर पर NASA के स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS), SpaceX के Starship और चीन के Long March 9 की श्रेणी में आ जाएगा।
| रॉकेट | एजेंसी | ऊँचाई | पेलोड क्षमता (LEO) |
| N1 (ISRO, प्रस्तावित) | भारत | ~120 मीटर | 75,000 किग्रा |
| Starship | SpaceX | ~120 मीटर | 100,000–150,000 किग्रा |
| SLS | NASA | 111–119 मीटर | 95,000–130,000 किग्रा |
| Long March 9 | चीन | ~110 मीटर | 100,000–150,000 किग्रा |
इस तुलना से साफ है कि ISRO अब विश्व स्तर पर टॉप क्लास रॉकेट टेक्नोलॉजी वाले देशों में शामिल होने जा रहा है।
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1. रक्षा और सुरक्षा – GSAT-7R जैसे उपग्रह भारत की नौसेना और सेनाओं को आधुनिक संचार क्षमताएँ देंगे।
2. मानवयुक्त मिशन – गगनयान और भविष्य के स्पेस स्टेशन प्रोजेक्ट्स के लिए यह रॉकेट अनिवार्य होगा।
3. वैज्ञानिक खोज – चंद्रमा, मंगल और अन्य ग्रहों की गहराई से खोज के लिए भारी पेलोड क्षमता जरूरी है।
4. आर्थिक दृष्टि से लाभ – विदेशी उपग्रहों को लॉन्च करने से भारत को अरबों डॉलर की कमाई होगी और वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में हिस्सेदारी बढ़ेगी।
5. उद्योग और रोजगार – इतनी विशाल परियोजना से इंजीनियरिंग, उत्पादन और रिसर्च के क्षेत्र में नए अवसर पैदा होंगे।
इतना बड़ा रॉकेट बनाने के लिए ISRO को कई नई चुनौतियों से गुजरना होगा:
•नए शक्तिशाली इंजन – SE-2000 जैसे आधुनिक इंजन पर काम जारी है।
•लॉन्च पैड का विकास – श्रीहरिकोटा में अतिरिक्त लॉन्च सुविधा बनानी होगी।
•पुन: उपयोग तकनीक – ताकि लागत कम हो और पर्यावरण पर दबाव घटे।
इस मेगा रॉकेट के ज़रिए भारत न केवल उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं में आत्मनिर्भर बनेगा बल्कि वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को और मज़बूत करेगा। यह प्रोजेक्ट भारत की आने वाली पीढ़ियों के लिए नई वैज्ञानिक प्रेरणा बनेगा।
ISRO का 40-मंजिला मेगा रॉकेट केवल एक तकनीकी परियोजना नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक है। 75 टन तक का पेलोड अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता भारत को उन चुनिंदा देशों की कतार में खड़ा करेगी जो सबसे भारी रॉकेट्स का संचालन कर सकते हैं। इससे न सिर्फ अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की स्थिति और मजबूत होगी, बल्कि रक्षा, अर्थव्यवस्था और वैश्विक सहयोग सभी क्षेत्रों में नए द्वार खुलेंगे।
विज्ञान हमें अंतरिक्ष की गहराइयों तक ले जा सकता है, लेकिन वास्तविक शांति और मुक्ति का मार्ग केवल आध्यात्मिक ज्ञान से ही संभव है। परमात्मा कबीर साहेब जी ने बताया कि मानव जीवन का मूल उद्देश्य परमेश्वर की खोज और भक्ति है। जैसे रॉकेट भारी पेलोड उठाकर अंतरिक्ष तक पहुँचता है, वैसे ही सतभक्ति मनुष्य आत्मा को जन्म-मरण के चक्र से उठाकर सतलोक की ओर ले जाती है। भौतिक प्रगति तभी सार्थक है जब वह आध्यात्मिक उन्नति के साथ जुड़ी हो।
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Ans. यह रॉकेट लगभग 120 मीटर (40-मंजिला इमारत जितना ऊँचा) होगा और इसका अस्थायी नाम N1 सुपर-हैवी लॉन्च व्हीकल रखा गया है।
Ans. यह रॉकेट एक साथ 75,000 किलोग्राम (75 टन) तक का पेलोड लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में पहुंचाने में सक्षम होगा।
Ans. रक्षा और सुरक्षा को मजबूती, मानवयुक्त मिशनों को गति, वैज्ञानिक खोजों को बढ़ावा, अंतरराष्ट्रीय उपग्रह प्रक्षेपण से आर्थिक लाभ और नए उद्योग-रोज़गार के अवसर।
Ans. यह NASA के Space Launch System (SLS), SpaceX के Starship, और चीन के Long March 9 जैसी कैटेगरी में शामिल होगा।
Ans. नए शक्तिशाली इंजन (SE-2000), बड़ा लॉन्च पैड विकसित करना, और पुन: उपयोग तकनीक अपनाना ताकि लागत और पर्यावरणीय दबाव कम हो।
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