विज्ञान की दुनिया में कुछ नाम हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें उनकी वास्तविक पहचान देर से मिलती है। ऐसा ही एक नाम है रोज़लिंड फ्रैंकलिन (Rosalind Franklin in Hindi)। जब हम DNA की संरचना की बात करते हैं, तो अक्सर वाटसन और क्रिक का नाम सबसे पहले आता है, लेकिन इस जटिल अणु की गुत्थी सुलझाने में रोज़लिंड फ्रैंकलिन का योगदान अविस्मरणीय है, खासकर उनकी प्रसिद्ध Photo 51 के ज़रिए।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम इस असाधारण वैज्ञानिक के जीवन, उनकी महत्वपूर्ण खोजों और उनकी विरासत को गहराई से जानेंगे, जिसमें Rosalind Franklin DNA से जुड़े उनके काम से लेकर उनके नाम पर बने संस्थानों तक की जानकारी शामिल होगी।
रोज़लिंड एल्सी फ्रैंकलिन (Rosalind Franklin Biography in Hindi) का जन्म 25 जुलाई, 1920 को लंदन के एक धनी और प्रभावशाली यहूदी परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनमें विज्ञान के प्रति गहरी रुचि थी। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के न्यून्हाम कॉलेज से प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने कोयले की संरचना पर महत्वपूर्ण शोध किया, जिसने उन्हें पीएचडी की डिग्री दिलाई। यह उनके एक्स-रे विवर्तन (X-ray diffraction) कौशल की नींव थी, जो बाद में Rosalind Franklin DNA शोध में उनके लिए अमूल्य साबित हुआ।
1951 में, रोज़लिंड फ्रैंकलिन लंदन के किंग्स कॉलेज में एक शोध सहयोगी के रूप में शामिल हुईं। यहाँ उन्होंने Maurice Wilkins के साथ मिलकर DNA की संरचना (Rosalind Franklin Discovery in Hindi) पर काम करना शुरू किया। उनका मुख्य काम एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी का उपयोग करके DNA के नमूनों की तस्वीरें लेना था।
उन्होंने डीएनए के नमूनों में पानी की मात्रा को नियंत्रित करके यह दिखाया कि यह अणु दो रूपों (ए और बी) में मौजूद हो सकता है। यहीं पर उनकी सबसे प्रसिद्ध खोजों में से एक हुई: Photo 51।
मई 1952 में, रोज़लिंड फ्रैंकलिन और उनके पीएचडी छात्र रेमंड गोसलिंग ने एक एक्स-रे विवर्तन छवि ली जिसे “Photo 51” के नाम से जाना जाता है। यह तस्वीर DNA के “बी-फॉर्म” की थी और इसमें एक स्पष्ट “X” पैटर्न दिखाई दे रहा था, जो कि डबल-हेलिक्स संरचना का एक निर्णायक प्रमाण था।
दुर्भाग्य से, फ्रैंकलिन की अनुमति के बिना, Maurice Wilkins ने यह तस्वीर जेम्स वाटसन को दिखा दी, जिन्होंने फ्रांसिस क्रिक के साथ मिलकर Photo 51 में मौजूद डेटा का उपयोग करके DNA के डबल-हेलिक्स मॉडल को विकसित किया। वाटसन, क्रिक और विल्किंस को 1962 में फिजियोलॉजी या मेडिसिन में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जबकि फ्रैंकलिन को उनके निधन (1958) के कारण यह सम्मान नहीं मिल सका, क्योंकि नोबेल पुरस्कार मरणोपरांत नहीं दिए जाते हैं।
इस घटना पर रोज़लिंड फ्रैंकलिन का एक प्रसिद्ध उद्धरण है:
“विज्ञान और रोजमर्रा की जिंदगी को अलग नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिए।”
यह दिखाता है कि वह अपने काम को केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रखती थीं, बल्कि इसे बड़े मानवीय संदर्भ में देखती थीं।
1958 में, मात्र 37 वर्ष की आयु में, रोज़लिंड फ्रैंकलिन का ओवेरियन कैंसर से निधन हो गया। ऐसा माना जाता है कि उनके व्यापक एक्स-रे विकिरण के संपर्क में आने के कारण यह बीमारी हुई थी, जो उनके शोध का एक अभिन्न अंग था।
हालांकि उनके योगदान को शुरू में कम आंका गया, लेकिन समय के साथ Rosalind Franklin discovery की महत्ता को व्यापक रूप से पहचाना गया है। आज, उन्हें DNA की संरचना को उजागर करने में एक अग्रणी शक्ति के रूप में सम्मानित किया जाता है।
उनकी विरासत को श्रद्धांजलि देने के लिए, दुनिया भर में कई संस्थानों और कार्यक्रमों का नाम उनके नाम पर रखा गया है:
इन पहलों के माध्यम से, Rosalind Franklin quotes और उनकी वैज्ञानिक भावना आज भी अनगिनत वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को प्रेरित कर रही है।
“विज्ञान और रोज़मर्रा की ज़िंदगी को अलग नहीं किया जा सकता और न ही किया जाना चाहिए।”-― रोज़लिंड फ्रैंकलिन
रोज़लिंड फ्रैंकलिन एक दूरदर्शी वैज्ञानिक थीं, जिनके काम ने आधुनिक जीव विज्ञान की नींव रखी। उनकी Rosalind Franklin DNA खोज, विशेषकर Photo 51 का योगदान, विज्ञान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। हालांकि उन्हें जीते जी वह पहचान नहीं मिली जिसकी वह हकदार थीं, उनकी विरासत आज भी जीवित है, जो न केवल वैज्ञानिक खोजों को प्रेरित करती है, बल्कि विज्ञान में लैंगिक समानता की आवश्यकता को भी उजागर करती है।
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