जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का निधन: एक राजनीतिक सफर का अंत

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Satya pal Malik death reason in Hindi

राजनीति की दुनिया से एक दुखद खबर सामने आई है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का आज निधन हो गया। 79 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद उन्होंने दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अंतिम सांस ली। सत्यपाल मलिक का निधन न केवल एक राजनीतिक व्यक्तित्व का अंत है, बल्कि एक ऐसे नेता की यात्रा का समापन भी है जो हमेशा अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते थे।

मलिक का राजनीतिक करियर कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा, जिसमें उन्होंने कई दलों के साथ काम किया। उनका सबसे चर्चित कार्यकाल जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में रहा, जहां उन्होंने ऐतिहासिक अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कौन थे सत्यपाल मलिक?

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सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के एक गांव में हुआ था। उनकी राजनीतिक यात्रा छात्र जीवन से ही शुरू हो गई थी। मेरठ विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश किया।

  • राजनीतिक करियर की शुरुआत: उन्होंने अपने करियर की शुरुआत भारतीय क्रांति दल (Bhartiya Kranti Dal) से की और 1974 में बागपत से विधायक चुने गए।
  • दलों का सफर: मलिक ने अपने राजनीतिक जीवन में कई पार्टियों का हिस्सा रहे, जिसमें कांग्रेस, जनता दल और अंततः भारतीय जनता पार्टी (BJP) शामिल हैं।
  • राज्यपाल के रूप में: वे बिहार, जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय जैसे महत्वपूर्ण राज्यों के राज्यपाल रहे।

जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद 370: एक ऐतिहासिक भूमिका

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सत्यपाल मलिक के करियर का सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक मोड़ अगस्त 2019 में आया। उस समय वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे, जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का ऐतिहासिक फैसला लिया। यह फैसला 5 अगस्त, 2019 को लिया गया था, और यह एक संयोग ही है कि मलिक का निधन भी 5 अगस्त को ही हुआ। उनके कार्यकाल में ही यह ऐतिहासिक बदलाव हुआ, जिसने जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को हमेशा के लिए बदल दिया।

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उन्होंने बाद के दिनों में सरकार की नीतियों की आलोचना भी की। खासकर पुलवामा हमले को लेकर उनके बयान काफी सुर्खियों में रहे थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर पुलवामा हमले के समय सरकार ने उनकी बात मानी होती तो शायद 40 जवानों की जान बच सकती थी। यह बयान उनके मुखर स्वभाव का प्रमाण था।

विवादों और बेबाक बयानों से रिश्ता

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सत्यपाल मलिक अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कई बार अपनी ही पार्टी की सरकार की आलोचना की। किसान आंदोलन के दौरान वे किसानों के पक्ष में खुलकर सामने आए और केंद्र सरकार की कृषि नीतियों की कड़ी निंदा की। यह उनके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू था कि वे सत्ता में रहते हुए भी अपनी बात कहने से कभी नहीं हिचकिचाते थे।

सत्यपाल मलिक का योगदान और विरासत

सत्यपाल मलिक ने भारतीय राजनीति में एक लंबा और प्रभावशाली सफर तय किया। वे एक ऐसे नेता के रूप में याद किए जाएंगे जिन्होंने अपने सिद्धांतों पर समझौता नहीं किया। उनके जीवन से यह सीखने को मिलता है कि राजनीति में पद से ज्यादा महत्वपूर्ण अपनी अंतरात्मा की आवाज होती है। उनका निधन भारतीय राजनीति में एक ऐसी खाली जगह छोड़ गया है, जिसे भरना मुश्किल होगा।

“जब मैं जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल था, तो मेरे पास दो फाइलें आईं – एक अंबानी के लिए और दूसरी आरएसएस के लिए। मैंने दोनों डील रद्द कर दीं। मैंने उनसे कहा कि मैं राज्यपाल के रूप में भ्रष्टाचार के लिए नहीं हूं।” – सत्यपाल मलिक (एक इंटरव्यू के दौरान का बयान)

श्रद्धांजलि और आगे की राह

सत्यपाल मलिक के निधन पर देशभर के नेताओं ने शोक व्यक्त किया है। उनकी विरासत को समझने के लिए हमें उनके पूरे राजनीतिक सफर को देखना होगा, जिसमें वे एक छात्र नेता से लेकर कई राज्यों के राज्यपाल तक पहुंचे।

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