Veto power in Hindi: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की बैठक में रूस ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल किया और उसके खिलाफ लाया जा रहा निंदा प्रस्ताव खारिज हो गया. रूस इससे पहले भारत के पक्ष में भी वीटो पावर का इस्तेमाल कर चुका है, जानिए क्या होती है वीटो पावर.
क्या है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) यूएन की एक शक्तिशाली संस्था है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना इस संस्था की जिम्मेदारी है. हर महीने इस सुरक्षा संस्था की अध्यक्षता अल्फाबेटिकल ऑर्डर में बदलती है. इस बार यह जिम्मा रूस को मिला हुआ है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा को सुनिश्चित करने लिए UNSC संस्था कुछ प्रतिबंध लगाने के साथ बल का प्रयोग भी कर सकती है.
क्या होती है वीटो पावर (Veto Power in Hindi)?
Veto Power in Hindi: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य और वर्तमान अध्यक्ष होने के कारण रूस के पास वीटो पावर है. रूस ने इस पावर का इस्तेमाल कियाा. नतीजा निंदा प्रस्ताव पास नहीं हो सका। भले ही यह प्रस्ताव पास न हो पाया हो, लेकिन परिषद में यूक्रेन पर आक्रमण करने के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के फैसले की निंदा की गई। रूस पहले ही दुनियाभर के देशों को दूर रहने की चेतावनी दे चुका था.
वीटो पावर फुल फॉर्म (VETO POWER FULL FORM)
वीटो लैटिन भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है ‘मैं निषेध करता हूँ’ वीटो का प्रयोग संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के सदस्यों के द्वारा किया जाता है, वीटों का फुल फॉर्म ‘I forbid’ है |
UNSC में शामिल 15 देश
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 मेम्बर्स हैं. इनमें से 5 स्थायी देश हैं और 10 अस्थायी. स्थायी देशों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस शामिल हैं. किसी भी मुद्दे पर फैसला लेने के लिए इन पांचों देशों की रजामंदी जरूरी है. इनमें से किसी भी एक देश के राजी न होने पर फैसला नहीं लिया जा सकता. इन देशों को वीटो पावर मिला हुआ है. संयुक्त राष्ट्र के निर्माण में इन देशों का अहम रोल रहा है, इसलिए इन देशों को कुछ खास अधिकार मिले हैं.
वहीं, अस्थायी देशों में भारत, ब्राजील, अल्बानिया, गैबॉन, घाना, आयरलैंड, केन्या, मेक्सिको, नॉर्वे और यूएई शामिल हैं. इन देशों के पास वीटो पावर नहीं है, हालांकि भारत और जापान लम्बे समय से स्थायी मेम्बर बनाए जाने की अपील कर रहे हैं.
Veto Power in Hindi: जानें क्या सुरक्षा परिषद का वीटो पावर?
Veto लैटिन भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब होता है ‘मैं अनुमति नहीं देता हूं’। प्राचीन काल में रोम में कुछ निर्वाचित अधिकारियों के पास अतिरिक्त शक्ति होती थी। वे इन शक्तियों का इस्तेमाल करके रोम सरकार की किसी कार्रवाई को रोक सकते थे। तब से यह शब्द किसी चीज को करने से रोकने की शक्ति के लिए इस्तेमाल होने लगा। वर्तमान समय में सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों चीन, फ्रांस,रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के पास वीटो पावर है। स्थायी सदस्यों के फैसले से अगर कोई सदस्य सहमत नहीं है तो वह वीटो पावर का इस्तेमाल करके उस फैसले को रोक सकता है। यही यूक्रेन के मामले में हुआ। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने यूक्रेन के पक्ष में मतदान किया, वहीं रूस ने वीटो शक्ति का इस्तेमाल करके इस पूरे प्रस्ताव को रोक दिया।
यूक्रेन से जुड़ा है वीटो का इतिहास (History of Veto Power)
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वीटो का इतिहास भी यूक्रेन से जुड़ा हुआ है। फरवरी, 1945 में क्रीमिया, यूक्रेन के शहर याल्टा में एक सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन को याल्टा सम्मेलन या क्रीमिया सम्मेलन के नाम से जाना जाता था। इसी सम्मेलन में सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री जोसफ स्टालिन ने वीटो पावर का प्रस्ताव रखा था। क्रीमिया सम्मेलन का आयोजन युद्ध बाद की योजना बनाने के लिए हुआ था।
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इसमें ब्रिटेन के पीएम विंसटन चर्चिल, सोवियत संघ के पीएम जोसफ स्टालिन और अमेरिका के राष्ट्रपति डी.रूजवेल्ट ने हिस्सा लिया। वैसे वीटो का यह कॉन्सेप्ट साल 1945 में ही नहीं आया। 1920 में लीग ऑफ नेशंस की स्थापना के बाद ही वीटो पावर अस्तित्व में आ गया था। उस समय लीग काउंसिल के स्थायी और अस्थायी सदस्यों, दोनों के पास वीटो की शक्ति थी।
Veto Power in Hindi: पहली बार कब हुआ Veto Power का इस्तेमाल
Veto Power in Hindi: सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (USSR) ने 16 फरवरी, 1946 को पहली बार वीटो पावर का इस्तेमाल किया था। लेबनान और सीरिया से विदेशी सैनिकों की वापसी के प्रस्ताव पर यूएसएसआर ने वीटो किया था। उस समय से अब तक वीटो का सैंकड़ों बार इस्तेमाल हो चुका है। हालांकि वर्ष 1991 में शीत युद्ध के समाप्त होने के बाद स्थायी सदस्यों द्वारा वीटो के इस्तेमाल में नया रुझान देखने को मिला है। अब तक पहले की तुलना में कम बार वीटो पावर का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि रूस और अमेरिका में फिर से कोल्ड वार जैसी स्थिति के बाद अब एक बार फिर से इसके ज्यादा इस्तेमाल होने का खतरा पैदा हो गया है।
वीटो पावर वाले देशों के नाम (how many countries have veto power)
१९४५ से २०१८ तक Uno के इतने वर्षों के बाद भी सिक्योरिटी कौंसिल में अभी तक मात्र पांच ही स्थायी सदस्य देश है जिन्हें वीटो पावर प्राप्त हैं. भारत समेत दर्जनों ऐसे देश है जिन्हें विश्व शान्ति एवं स्थिरता के लिए अब सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए.
चलिए अब हम उन पांच देशो के बारे में जानते है जिनके पास वीटो पावर है जिन्होंने कब कब व कितनी बार इस शक्ति का प्रयोग किया हैं.
- रूस- सोवियत रूस दूसरे विश्वयुद्ध से पूर्व जब संयुक्त राष्ट्र का जन्म हुआ तो अमेरिका से भी शक्तिशाली राष्ट्रसंघ था. संयुक्त राष्ट्र के इतिहास के पहले 10 वर्षों में सोवियत संघ ने 79 बार वीटो का प्रयोग किया आपकों जानकार आश्चर्य होगा, कि इस अवधि में मात्र चीन, अमेरिका, ब्रिटेन ने एक बार तथा फ़्रांस ने इसे दो बार ही प्रयोग किया था. रूस के लिए 1957 से 1985 तक विदेश मंत्री रहे आंद्रेई ग्रोमिको को श्रीमान नहीं भी कहा जाता था, हालांकि सोवियत संघ के विघटन के बाद अब तक मात्र दो बार ही वीटो का प्रयोग रूस की तरफ से हुआ हैं. साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र अभियान की वित्तीय व्यवस्था के विरोध में तथा बोस्नियाई सर्बों के पक्ष में.
- संयुक्त राज्य अमरीका– अमेरिका के वीटो पावर इस्त्मोल के इतिहास में अमेरिका ने सर्वाधिक 35 बार इजरायल के विरुद्ध इस निषेधाधिकार का उपयोग किया हैं. कुल ५३ बार इस पावर का उपयोग अमेरिका ने अब तक किया हैं.
- ग्रेट ब्रिटेन– सभी स्थायी देशों ने अपने अपने राष्ट्र हितों को ध्यान में रखते हुए इस शक्ति का दुरुपयोग किया हैं. ब्रिटेन के वीटो पावर इतिहास में अब तक ३२ बार इसका उपयोग हुआ हैं. जिनमें सात बार केवल अकेले रूप में २३ बार अमेरिका के समर्थन में तथा १४ बार इन्होने फ़्रांस का साथ दिया है. ब्रिटेन की ओर से वीटो का अंतिम प्रयोग वर्ष १९८९ में पनामा लिक में अमेरिका के विरुद्ध किया गया था.
- फ़्रांस– फ्रांस ने अब तक १८ बार इस शक्ति का प्रयोग किया हैं जिसमें उन्हें १३ बार ब्रिटेन और अमेरिका दोनों का साथ मिला, जबकि पनामा मामले में उन्होंने अमेरिका के खिलाफ इसका प्रयोग किया था, जिसमें उसे ब्रिटेन का समर्थन हासिल था.
- चीन- ऊपर के चार देशों के वीटो पावर प्रयोग का भारत पर अधिक प्रभाव नही पड़ा, मगर चीन ने कई बार इस विशेषाधिकार का भारत के विरुद्ध इस्त्मोल किया हैं. पहली बार इसनें मंगोलिया को uno में सदस्यता के विरुद्ध प्रयोग किया, इसके बाद १९७२ में भारत द्वारा बांग्लादेश के निर्माण के आवेदन पर पाकिस्तान का समर्थन लेकर चीन द्वारा इसका प्रयोग किया गया.
कैसे मिलती है वीटो पॉवर?
वीटो पॉवर किसी भी देश को उसकी काबिलियत को देख कर दी जाती है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब भारत स्वतंत्र हुआ तब भारत की औद्योगिक,राजनीतिक, आर्थिक तथा सैन्य शक्ति के विकास को देखते हुए भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट यानि ”वीटो पॉवर” देने की पेशकश की गई थी परन्तु नेहरू जी ने तब चीन के लोगों के गणतंत्र का हवाला देते हुए वीटो पॉवर लेने से इनकार कर दिया था. भारत या किसी भी देश को वीटो पॉवर तभी मिल सकता है जब उसे सारे स्थायी देशों के सकारात्मक वोट मिलें और कम से कम दो – तिहाई (2/3) देशों के सकारात्मक वोट मिल सके.
UNSC की मीटिंग कब और कैसे बुलाई जाती है?
- किसी भी मसले को लेकर कोई भी देश सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने की मांग कर सकता है।
- इसके बाद सदस्य देश यह तय करते हैं कि बैठक बुलाई जाए या नहीं।
- UNSC में किसी भी मामले को लेकर दो तरह की मीटिंग बुलाई जाती है। पहली ओपन डिबेट और दूसरी क्लोज्ड डोर मीटिंग।
- क्लोज्ड डोर बैठक सामान्य बैठक की तरह ही होती है, लेकिन आम लोगों के लिए यह नहीं होती है। इसमें सिर्फ 5 स्थायी मेंबर शामिल होते हैं।
- मीडिया के लोगों को इस मीटिंग में शामिल नहीं किया जाता है। इसका रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है, बल्कि एक आधिकारिक बयान जारी होता है।
- वहीं ओपन डिबेट में सभी 15 मेंबर शामिल होते हैं। इसमें मीडिया के लोग भी भाग ले सकते हैं। इस दौरान सभी बयानों को जारी किया जाता है।
कौन देता है वीटो पावर?
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों को वीटो पावर देने का अधिकार अमेरिका के पास है. यही सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों को वीटो पावर प्रदान करता है. सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों को शामिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से नियम बना रखे हैं. इसके लिए मोटे तौर पर इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है कि जिस देश को सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनाया जा रहा है, उसे पास वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने की क्षमता कितनी है?
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