अमेरिकी राजनीति और तकनीकी जगत में एक बार फिर हलचल मच गई है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चिप बनाने वाली दिग्गज कंपनी इंटेल के CEO लिप-बु टैन के इस्तीफे की मांग की है। यह मांग उनके चीन से कथित संबंधों को लेकर उठ रही है, जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि अमेरिका की चीन नीति और घरेलू तकनीकी कंपनियों पर बढ़ते दबाव को दर्शाता है।
विवाद की जड़: लिप-बु टैन और चीन कनेक्शन
डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म “ट्रुथ सोशल” पर एक पोस्ट के जरिए सीधे तौर पर लिप-बु टैन को “कंफ्यूज्ड” (उलझन में) बताया और उनके तत्काल इस्तीफे की मांग की। यह घटना अमेरिकी सीनेटर टॉम कॉटन द्वारा इंटेल के बोर्ड को लिखे गए एक पत्र के बाद सामने आई, जिसमें उन्होंने टैन के चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) और चीनी सेना से जुड़ी कंपनियों में कथित निवेश पर सवाल उठाए थे।
- चीन की कंपनियों में निवेश: टैन पर आरोप है कि उन्होंने कई ऐसी चीनी कंपनियों में निवेश किया है, जिनके संबंध चीन की सरकार और सेना से हैं।
- CHIPS Act फंडिंग: सीनेटर कॉटन ने यह भी बताया कि इंटेल को अमेरिकी सरकार से CHIPS Act के तहत $8 बिलियन की फंडिंग मिली है। ऐसे में, CEO के ऐसे लिंक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा हो सकते हैं।
- चीन-अमेरिका तकनीकी युद्ध: यह विवाद अमेरिका और चीन के बीच चल रहे तकनीकी युद्ध का एक नया मोर्चा खोलता है, जहां दोनों देश सेमीकंडक्टर और AI जैसे क्षेत्रों में वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
इंटेल के लिए बढ़ी मुश्किलें
डोनाल्ड ट्रंप के इस बयान का असर तुरंत इंटेल के शेयरों पर देखा गया। उनके बयान के बाद प्री-मार्केट ट्रेडिंग में कंपनी के शेयरों में लगभग 5% की गिरावट दर्ज की गई। यह गिरावट दर्शाती है कि बाजार इस तरह के राजनीतिक दबाव को कितनी गंभीरता से ले रहा है। इंटेल पहले से ही AI चिप्स के बाजार में Nvidia जैसी कंपनियों से पिछड़ रही है। ऐसे में, यह विवाद कंपनी के लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
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क्या हैं इस पूरे मामले के संभावित परिणाम?
- CEO का इस्तीफा: अगर दबाव बढ़ता है, तो लिप-बु टैन को पद छोड़ना पड़ सकता है, जिससे कंपनी में नेतृत्व का संकट पैदा होगा।
- सरकारी जांच: अमेरिका सरकार इस मामले की गहन जांच शुरू कर सकती है, जिससे इंटेल के संचालन पर असर पड़ सकता है।
- निवेशकों का विश्वास डगमगाना: इस विवाद से निवेशकों का भरोसा हिल सकता है, जिससे कंपनी के शेयर और गिर सकते हैं।
आगे क्या?
यह देखना दिलचस्प होगा कि इंटेल बोर्ड इस स्थिति से कैसे निपटता है। क्या वे अपने CEO का बचाव करेंगे या दबाव के आगे झुक जाएंगे? इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि आधुनिक भू-राजनीति में तकनीकी कंपनियां सिर्फ व्यापारिक इकाई नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक हितों का भी हिस्सा हैं।