भारतीय राजनीति के एक अहम मोड़ पर, इंडिया गठबंधन ने आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए एक ऐसा दांव खेला है जिसने राजनीतिक पंडितों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में घोषणा की कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी विपक्षी गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार होंगे। यह घोषणा सिर्फ एक नाम का ऐलान नहीं, बल्कि एक मजबूत वैचारिक संदेश है।
खड़गे ने साफ शब्दों में कहा, “यह एक वैचारिक लड़ाई है।” यह मुकाबला एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन के खिलाफ होगा, जिससे यह चुनाव सिर्फ संख्या बल का खेल न होकर, संवैधानिक मूल्यों और विचारधाराओं के बीच की टक्कर बन गया है।
न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी का चयन इंडिया गठबंधन की दूरदर्शिता को दर्शाता है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक सिद्धांतों की रक्षा को सर्वोपरि मानता है। यह लेख इस महत्वपूर्ण घोषणा के हर पहलू का विश्लेषण करेगा – उनके कानूनी करियर की गहराई से पड़ताल, उनके चयन के पीछे की राजनीतिक और सामाजिक रणनीतियाँ, और इस चुनाव का संभावित परिणाम।
न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी: न्याय और निष्ठा का पर्याय
जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी का नाम कानूनी और न्यायिक जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उनका जीवन और करियर न्याय के सिद्धांतों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
- प्रारंभिक जीवन और शिक्षा: 8 जुलाई 1946 को जन्मे रेड्डी ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद 1971 में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने नागरिक और संवैधानिक मामलों में विशेषज्ञता हासिल की और जल्द ही अपनी कानूनी समझ के लिए ख्याति प्राप्त की।
- न्यायिक आरोहण: 1995 में वे आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के स्थायी न्यायाधीश बने। 2005 में, उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने अपनी प्रशासनिक और न्यायिक क्षमताओं का लोहा मनवाया।
- सर्वोच्च न्यायालय में कार्यकाल: 12 जनवरी 2007 को, वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। 2011 में अपनी सेवानिवृत्ति तक, उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए, जिन्होंने देश की कानूनी और सामाजिक व्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला।
न्यायमूर्ति रेड्डी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने हमेशा आम आदमी और हाशिए के वर्गों के अधिकारों को प्राथमिकता दी। उनके कई फैसलों में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि उन्होंने कैसे सत्ता के दुरुपयोग पर अंकुश लगाया और संविधान की आत्मा की रक्षा की।
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इंडिया गठबंधन की रणनीति: एक मास्टरस्ट्रोक?
इंडिया गठबंधन द्वारा बी. सुदर्शन रेड्डी का चयन कोई आकस्मिक निर्णय नहीं है, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। इस निर्णय के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:
- संवैधानिक विश्वसनीयता: गठबंधन ने एक ऐसे व्यक्ति को चुना है जो राजनीति से परे है। उनका कानूनी और न्यायिक अनुभव उन्हें एक विश्वसनीय और तटस्थ चेहरा बनाता है। यह चयन जनता के बीच यह संदेश देता है कि गठबंधन केवल सत्ता की लड़ाई नहीं लड़ रहा, बल्कि देश के संवैधानिक ढांचे को मजबूत करना चाहता है।
- सर्वसम्मति का प्रतीक: विपक्ष के विभिन्न दलों, जिनकी अपनी-अपनी राजनीतिक विचारधाराएँ और प्राथमिकताएँ हैं, के लिए एक साझा उम्मीदवार पर सहमत होना एक चुनौती थी। तृणमूल कांग्रेस जैसे कुछ दलों की गैर-राजनीतिक उम्मीदवार की मांग थी, जबकि दक्षिण भारत के दल अपने क्षेत्र से किसी को उम्मीदवार बनाना चाहते थे। बी. सुदर्शन रेड्डी इन दोनों ही मानदंडों पर खरे उतरते हैं, जिससे सभी दलों के बीच एकता का संदेश गया है।
- न्यायिक स्वतंत्रता का मुद्दा: हाल के वर्षों में, न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर चिंताएँ बढ़ी हैं। एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश को उपराष्ट्रपति पद के लिए नामित करके, इंडिया गठबंधन ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक मजबूत राजनीतिक रुख अपनाया है। यह फैसला एक प्रकार से सरकार को यह संदेश देता है कि न्यायपालिका और उसकी स्वायत्तता पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: संख्या बल और वैचारिक संग्राम
उपराष्ट्रपति चुनाव का मुकाबला हमेशा से संख्या बल पर आधारित रहा है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य मतदान करते हैं। वर्तमान में, लोकसभा और राज्यसभा में एनडीए का संख्या बल काफी मजबूत है।
- संख्याओं का गणित: लोकसभा में एनडीए को स्पष्ट बहुमत है, और राज्यसभा में भी वे धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत कर रहे हैं। विपक्ष के पास कुल सांसदों की संख्या लगभग 355 है, जबकि एनडीए के पास 427 के करीब सांसद हैं। इस गणित के अनुसार, एनडीए उम्मीदवार की जीत लगभग तय मानी जा रही है।
- विचारधारा की लड़ाई: हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने साफ कर दिया है कि यह मुकाबला सिर्फ आंकड़ों का नहीं है। यह उन मूल्यों का चुनाव है जो भारत को एक लोकतांत्रिक गणराज्य बनाए रखते हैं। बी. सुदर्शन रेड्डी का चयन एक प्रतीकात्मक कदम है, जो विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने के साथ-साथ मतदाताओं को यह याद दिलाता है कि संस्थानों की रक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। यह विपक्ष की वह रणनीति है जो चुनाव जीतने से अधिक, जनता के बीच एक मजबूत वैचारिक आधार तैयार करने पर केंद्रित है।
जस्टिस रेड्डी के ऐतिहासिक फैसले
न्यायमूर्ति रेड्डी को उनके प्रगतिशील और साहसिक फैसलों के लिए याद किया जाता है। एक प्रमुख उदाहरण ‘सलवा जुडूम’ मामला है, जिसमें उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा नक्सलियों से लड़ने के लिए नागरिकों को हथियारबंद करने के कदम को असंवैधानिक घोषित किया था। इस फैसले ने मानवाधिकारों की रक्षा को प्राथमिकता दी और दिखाया कि न्यायपालिका कैसे कार्यपालिका की मनमानी पर अंकुश लगा सकती है।
निष्कर्ष: लोकतंत्र की परीक्षा
इंडिया गठबंधन द्वारा बी. सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाना एक रणनीतिक और नैतिक दोनों तरह का फैसला है। यह दिखाता है कि विपक्ष ने इस चुनाव को सिर्फ जीत-हार के नजरिए से नहीं, बल्कि देश के भविष्य से जुड़े बड़े मुद्दों पर एक बहस छेड़ने के लिए चुना है। यह मुकाबला भारतीय राजनीति में एक नया अध्याय लिख रहा है, जहां एक ओर सत्ता का संख्या बल है, तो दूसरी ओर संवैधानिक मूल्यों की प्रतिष्ठा है।
चाहे नतीजा कुछ भी हो, यह चुनाव भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज होगा। यह हमें याद दिलाएगा कि जब संस्थाओं पर सवाल उठते हैं, तो उन्हें बचाने के लिए किस तरह के साहसिक कदम उठाए जा सकते हैं।