बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt), एक महान भारतीय क्रांतिकारी जिन्होंने भगत सिंह के साथ सेंट्रल असेंबली में बम फेंका। जानें उनके जीवन, संघर्ष और गुमनामी की पूरी कहानी।
बटुकेश्वर दत्त: भारतीय स्वतंत्रता के एक अदम्य नायक
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे कई नायक हुए हैं जिनके बलिदान और संघर्ष को इतिहास के पन्नों में उतनी पहचान नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी। ऐसे ही एक अदम्य क्रांतिकारी थे बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt)। उनका नाम सुनते ही सबसे पहले भगत सिंह के साथ सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की घटना याद आती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस घटना के बाद उनके जीवन ने कितनी कठिनाइयों का सामना किया? आइए, आज हम इस महान देशभक्त की शौर्यगाथा को विस्तार से जानते हैं।
कौन थे बटुकेश्वर दत्त? प्रारंभिक जीवन और क्रांति की ओर
बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) का जन्म 18 नवंबर 1910 को तत्कालीन बंगाल के बर्दवान जिले के ओरी गांव में हुआ था। उनकी शिक्षा कानपुर में हुई, जहां पी.पी.एन. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई। यह मुलाकात उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। भगत सिंह के विचारों से प्रभावित होकर, बटुकेश्वर दत्त जल्द ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) का हिस्सा बन गए। उन्होंने संगठन के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जिसमें आगरा में बम फैक्ट्री स्थापित करने में मदद करना और बम बनाने का प्रशिक्षण लेना शामिल था।
सेंट्रल असेंबली बम कांड: एक ऐतिहासिक घटना
8 अप्रैल, 1929 को बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ मिलकर दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका। यह बम किसी को नुकसान पहुंचाने के इरादे से नहीं फेंका गया था, बल्कि इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के बहरे कानों तक अपनी आवाज पहुंचाना था। बम फेंकने के बाद, उन्होंने “इंकलाब जिंदाबाद!” के नारे लगाए और पर्चे फेंके, जिनमें उनके कार्यों के पीछे का तर्क समझाया गया था। इस घटना के बाद, दोनों ने गिरफ्तारी दी, जिसका उद्देश्य मुकदमे के माध्यम से अपनी क्रांतिकारी विचारधारा का प्रचार करना था।

- उद्देश्य: ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जन-जागरण और उनके दमनकारी कानूनों का विरोध।
- नारा: “इंकलाब जिंदाबाद!” (क्रांति अमर रहे!)
- परिणाम: भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की गिरफ्तारी और मुकदमा।
जेल यात्रा और भूख हड़ताल

गिरफ्तारी के बाद, बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान की कुख्यात काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में भारतीय कैदियों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार के खिलाफ उन्होंने भगत सिंह और अन्य साथियों के साथ ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। यह भूख हड़ताल 45 दिनों तक चली और इसने पूरे देश का ध्यान कैदियों की दुर्दशा की ओर खींचा। इस भूख हड़ताल के परिणामस्वरूप, कैदियों के अधिकारों में कुछ सुधार हुए, हालांकि बटुकेश्वर दत्त को आजीवन यातनाएं सहनी पड़ीं।
आज़ादी के बाद का संघर्ष और गुमनामी

1947 में भारत की आजादी के बाद बटुकेश्वर दत्त को जेल से रिहा कर दिया गया। लेकिन आजाद भारत में उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा। उन्हें कई तरह की आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें सिगरेट कंपनी के एजेंट के रूप में काम करना पड़ा और डबलरोटी बनाने का कारखाना भी खोला, जो ठीक से नहीं चला। दुख की बात यह है कि जिस देश के लिए उन्होंने अपनी जवानी न्यौछावर कर दी, उसी देश में उन्हें अपनी पहचान साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। यहाँ तक कि उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाणपत्र भी मांगा गया!
Also Read: मुंशी प्रेमचंद जयंती: साहित्य के सम्राट को नमन
एक दुखद तथ्य यह है कि कई बार हमारे देश में उन लोगों को भुला दिया जाता है जिन्होंने अपना सब कुछ देश के लिए समर्पित कर दिया। बटुकेश्वर दत्त का जीवन इसका एक दर्दनाक उदाहरण है।
अंतिम दिन और विरासत
बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) को 1964 में कैंसर का पता चला। उनकी तबीयत बिगड़ने पर उन्हें पटना से दिल्ली के एम्स अस्पताल लाया गया। 20 जुलाई, 1965 को, 54 वर्ष की आयु में, उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार फिरोजपुर के हुसैनीवाला में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की समाधि के पास किया जाए, जहां आज वे अपने साथियों के साथ शांति से विश्राम कर रहे हैं।

बटुकेश्वर दत्त का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची देशभक्ति केवल क्रांति में नहीं, बल्कि उसके बाद के संघर्षों में भी निहित है। हमें उनके बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए और उन सभी गुमनाम नायकों को याद रखना चाहिए जिन्होंने हमें आज़ादी दिलाने में अपना योगदान दिया।
बटुकेश्वर दत्त से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें | Facts about Batukeshwar Dutt in Hindi
- जन्म: 18 नवंबर 1910
- निधन: 20 जुलाई 1965
- प्रसिद्धि: भगत सिंह के साथ सेंट्रल असेंबली बम कांड (1929)
- प्रमुख संगठन: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)
- जेल: काला पानी (अंडमान)
बटुकेश्वर दत्त की स्मृति में हमें क्या करना चाहिए?
बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) जैसे नायकों को याद करना और उनकी कहानियों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना हमारी ज़िम्मेदारी है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर, हमें देश के लिए समर्पित भाव से काम करना चाहिए।
- शिक्षा: युवाओं को उनके बलिदानों से अवगत कराएं।
- स्मरण: उनके नाम पर स्मारक और कार्यक्रम आयोजित करें।
- अनुसंधान: उनके जीवन के अनछुए पहलुओं पर और शोध को बढ़ावा दें।