HPCL: रूसी तेल पर सरकार का कोई निर्देश नहीं, इकोनॉमिक्स के आधार पर करेंगे फैसला

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पिछले कुछ समय से भारत और रूसी तेल (Russian Oil) को लेकर वैश्विक स्तर पर काफी चर्चा हो रही है। खासकर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़ाने को लेकर कई तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं। इन्हीं अटकलों के बीच, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) के चेयरमैन ने एक महत्वपूर्ण बयान देकर स्थिति को साफ कर दिया है। उन्होंने कहा है कि रूसी तेल खरीदने या न खरीदने को लेकर सरकार की तरफ से उन्हें कोई निर्देश नहीं मिला है। कंपनियों को यह फैसला पूरी तरह से अपने आर्थिक हितों के आधार पर लेने की छूट है।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब कुछ रिपोर्ट्स में यह दावा किया जा रहा था कि भारत सरकार अपनी तेल कंपनियों से रूसी तेल की खरीद कम करने के लिए कह सकती है। लेकिन, HPCL के इस बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत की ऊर्जा नीति (Energy Policy) राष्ट्रीय हित और आर्थिक लाभ पर आधारित है, न कि किसी बाहरी दबाव पर।

सरकार की नीति: इकोनॉमिक्स फर्स्ट, पॉलिटिक्स सेकंड

भारत हमेशा से अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देता रहा है। कच्चे तेल के तीसरे सबसे बड़े आयातक के रूप में, भारत अपनी 85% से अधिक कच्चे तेल की जरूरत को आयात से पूरा करता है। ऐसे में, कच्चे तेल की कीमतों का सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था और आम जनता पर पड़ता है। रूसी तेल पर छूट मिलने से भारत को अपनी ऊर्जा लागत को कम करने में मदद मिली, जिससे घरेलू स्तर पर पेट्रोल और डीजल की कीमतें स्थिर रखने में भी सहायता मिली।

एचपीसीएल के चेयरमैन ने इस बात पर जोर दिया कि कंपनी ने पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में रूसी तेल की खरीद कम की है, लेकिन यह किसी भू-राजनीतिक दबाव के कारण नहीं, बल्कि आर्थिक कारणों से किया है। उन्होंने बताया कि छूट कम होने के कारण रूसी तेल की खरीद अब उतनी आकर्षक नहीं रह गई थी। इसी वजह से कंपनी ने खरीद में कटौती की है। यह पूरी तरह से एक व्यावसायिक और आर्थिक फैसला था।

HPCL के फैसले के प्रमुख कारण:

  • घटती छूट: जब रूसी तेल पर शुरुआती दिनों में भारी छूट मिल रही थी, तब भारतीय रिफाइनरियों ने इसका भरपूर फायदा उठाया। लेकिन, जैसे-जैसे मांग बढ़ी, छूट कम होती गई, जिससे अन्य आपूर्तिकर्ताओं से तेल खरीदना अधिक फायदेमंद हो गया।
  • आर्थिक दक्षता: HPCL जैसी कंपनियां लगातार अपने परिचालन को अधिक कुशल बनाने के तरीकों की तलाश में रहती हैं। अगर कोई दूसरा आपूर्तिकर्ता बेहतर कीमत और शर्तों पर तेल प्रदान करता है, तो कंपनियां उसी का चुनाव करेंगी।
  • आपूर्ति श्रृंखला का लचीलापन: अपनी खरीद को केवल एक स्रोत पर निर्भर रखने के बजाय, HPCL वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की तलाश कर रही है ताकि भविष्य में किसी भी तरह की भू-राजनीतिक या आपूर्ति संबंधी बाधाओं का सामना किया जा सके।

भारत के लिए रूसी तेल क्यों महत्वपूर्ण था?

यूक्रेन युद्ध से पहले, रूस भारत के लिए कच्चे तेल का एक बड़ा आपूर्तिकर्ता नहीं था। भारत मुख्य रूप से इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे मध्य पूर्व के देशों से तेल खरीदता था। लेकिन 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए, जिससे रूस को अपने तेल के लिए नए खरीदारों की तलाश करनी पड़ी। इसी दौरान, भारत ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए भारी छूट पर रूसी तेल खरीदना शुरू कर दिया।

एक आंकड़े के अनुसार: वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के कुल कच्चे तेल आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी 35% से अधिक हो गई थी। यह एक बड़ा बदलाव था, क्योंकि 2020 में यह हिस्सेदारी 2% से भी कम थी। यह भारत की राष्ट्रीय हित-आधारित विदेश नीति का एक स्पष्ट उदाहरण है।

क्या अमेरिकी दबाव का असर हुआ है?

हाल ही में, अमेरिकी सरकार द्वारा भारत पर रूसी तेल खरीदने को लेकर कुछ बयान दिए गए थे। हालांकि, भारत सरकार ने इन बयानों का कड़ा जवाब दिया और यह स्पष्ट किया कि वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी भी देश से तेल खरीद सकती है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इकोनॉमिक टाइम्स (The Economic Times) को दिए एक बयान में कहा था, “हम अपने उपभोक्ताओं के हित को ध्यान में रखेंगे और सबसे सस्ता विकल्प चुनेंगे। अगर रूसी कच्चा तेल हमें अन्य स्रोतों से सस्ते में मिलता है, तो हम अपने उपभोक्ताओं को क्यों दंडित करें?”

यह दिखाता है कि भारत सरकार का रुख पूरी तरह से आर्थिक है। कंपनियों को भी इसी आर्थिक तर्क के आधार पर फैसले लेने की पूरी छूट दी गई है।

आगे की राह: क्या भारत रूसी तेल खरीदना जारी रखेगा?

HPCL के बयान से यह साफ है कि भविष्य में रूसी तेल की खरीद जारी रहेगी या नहीं, यह पूरी तरह से बाजार की स्थितियों पर निर्भर करेगा। अगर रूसी तेल फिर से प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उपलब्ध होता है, तो भारतीय कंपनियां निश्चित रूप से इसे खरीदने पर विचार करेंगी। वहीं, अगर छूट कम रहती है और अन्य देशों से तेल खरीदना सस्ता पड़ता है, तो कंपनियां अन्य विकल्पों की ओर रुख कर सकती हैं।

यह स्थिति भारत के लिए एक तरह से फायदेमंद है, क्योंकि यह उसे वैश्विक तेल बाजार में अधिक लचीलापन प्रदान करती है। भारत किसी एक देश पर निर्भर नहीं है और वह हमेशा सबसे अच्छे सौदे की तलाश में रहता है। यह भारत की मजबूत आर्थिक नीति और राष्ट्रीय हितों की प्राथमिकता को दर्शाता है।

निष्कर्ष: HPCL का बयान और भारत की आत्मनिर्भरता

HPCL के चेयरमैन का यह बयान सिर्फ एक कंपनी की खरीद नीति के बारे में नहीं है, बल्कि यह भारत की व्यापक आर्थिक और विदेश नीति को भी दर्शाता है। यह स्पष्ट करता है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास को सबसे ऊपर रखता है। सरकार अपनी कंपनियों को व्यावसायिक निर्णय लेने की स्वतंत्रता देती है, जिससे वे वैश्विक बाजार में तेजी से बदलते हालात के अनुसार काम कर सकें।

यह दृष्टिकोण भारत को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनाता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भी उसकी स्थिति को सशक्त करता है। भारत अपनी शर्तों पर व्यापार करने और अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने में सक्षम है।

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