Malegaon Blast Case 2008 History & Judgment in Hindi: मालेगांव, महाराष्ट्र का एक छोटा सा शहर, जो 29 सितंबर 2008 की रात एक भयानक घटना का गवाह बना। इस रात हुए बम धमाके ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। रमजान के पवित्र महीने में हुए इस विस्फोट में 6 लोगों की जान चली गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे। यह घटना न केवल एक त्रासदी थी, बल्कि इसने भारतीय न्याय प्रणाली और “हिंदू आतंकवाद” जैसे शब्द को लेकर एक लंबी बहस भी छेड़ी।
इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (Pragya Thakur) का नाम प्रमुखता से उछला, जिन्हें बाद में गिरफ्तार किया गया। 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, हाल ही में एनआईए (NIA) की विशेष अदालत ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में साध्वी प्रज्ञा सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।
Malegaon Blast Case 2008 History | मालेगांव बम ब्लास्ट: क्या हुआ था उस रात?
29 सितंबर 2008 की रात, महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में अंजुमन चौक और भिक्कू चौक के बीच एक मोटरसाइकिल पर रखे बम में विस्फोट हो गया। यह धमाका इतना भीषण था कि 6 लोगों की मौत हो गई और करीब 101 लोग घायल हो गए। यह घटना सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मालेगांव में तनाव का कारण बनी और इसने तुरंत राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और मालेगांव ब्लास्ट का कनेक्शन
इस घटना के बाद जांच एजेंसियों ने तेजी से कार्रवाई की। महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने 23 अक्टूबर 2008 को साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और तीन अन्य को गिरफ्तार किया। एटीएस ने दावा किया कि विस्फोट दक्षिणपंथी चरमपंथियों द्वारा किया गया था और जिस मोटरसाइकिल का इस्तेमाल किया गया था, वह साध्वी प्रज्ञा के नाम पर पंजीकृत थी। इसके बाद लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को भी कथित संलिप्तता के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने अपनी गिरफ्तारी और हिरासत के दौरान यातनाओं का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उन्हें 13 दिनों तक प्रताड़ित किया गया और झूठे आरोप कबूल करने के लिए दबाव डाला गया। यह मामला राजनीति और न्याय के गलियारों में लंबे समय तक गूंजता रहा।
17 साल बाद आया फैसला: सभी आरोपी बरी
लगभग 17 साल तक चली सुनवाई के बाद, 31 जुलाई 2025 को मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने इस मामले में बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (रिटायर्ड) रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय रहीरकर, सुधाकर धर द्विवेदी और समीर कुलकर्णी सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया।
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Malegaon Blast Case 2008; अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि मोटरसाइकिल में बम रखा गया था और आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस और विश्वसनीय सबूत नहीं मिले। विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने टिप्पणी की कि “अभियुक्तों पर गहरा संदेह हो सकता है, लेकिन उन्हें सजा देने के लिए यह काफी नहीं है।”
कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें | Malegaon Blast Case 2008 Judgment
- सबूतों का अभाव: कोर्ट ने पाया कि कर्नल पुरोहित के घर RDX होने या उनके द्वारा बम बनाने का कोई सबूत नहीं मिला।
- मोटरसाइकिल का संबंध: साध्वी प्रज्ञा ठाकुर से मोटरसाइकिल के सीधे संबंध का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिला।
- दोषपूर्ण पंचनामा: घटनास्थल का पंचनामा (मौके पर तैयार की गई रिपोर्ट) दोषपूर्ण पाया गया, जिससे सबूतों की विश्वसनीयता पर सवाल उठे।
- गवाहों का मुकरना: साजिश से संबंधित बैठकों के गवाह अपने बयानों से पलट गए, जिससे अभियोजन पक्ष साजिश को साबित करने में विफल रहा।
- मेडिकल सर्टिफिकेट में हेराफेरी: कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट में हेराफेरी की गई थी।
यह फैसला उन सभी आरोपियों के लिए एक बड़ी राहत है, जिन्होंने वर्षों तक इस मामले के कारण सामाजिक और कानूनी चुनौतियों का सामना किया। साध्वी प्रज्ञा ने फैसले के बाद कहा कि उन्हें 17 साल तक अपमानित किया गया और उनका जीवन बर्बाद कर दिया गया।
इस फैसले के मायने
इस फैसले का भारतीय न्याय प्रणाली और आतंकवाद से जुड़े मामलों पर दूरगामी प्रभाव हो सकता है। यह एक बार फिर इस बात पर जोर देता है कि अदालतें केवल ठोस सबूतों के आधार पर ही किसी को दोषी ठहरा सकती हैं, न कि संदेह या धारणा के आधार पर।
मालेगांव ब्लास्ट मामले ने ‘भगवा आतंकवाद’ या ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसे शब्दों को भी जन्म दिया था, जिस पर देश में काफी राजनीतिक बहस हुई। इस मामले में सभी आरोपियों का बरी होना इन शब्दों और उनके निहितार्थों पर नए सिरे से विचार करने पर मजबूर करता है।
निष्कर्ष और आगे क्या?
मालेगांव ब्लास्ट मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर (Sadhvi Pragya) और अन्य आरोपियों का बरी होना एक महत्वपूर्ण न्यायिक मील का पत्थर है। यह फैसला हमें याद दिलाता है कि न्याय की प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकती है, लेकिन अंततः यह सबूतों और कानूनी सिद्धांतों पर आधारित होती है। इस फैसले के बाद, पीड़ितों के परिवारों के लिए आगे की राह क्या होगी, यह देखना बाकी है। कुछ पीड़ित परिवारों ने इस फैसले को निराशाजनक बताते हुए उच्च न्यायालय में अपील करने की बात कही है।