Subhadra Kumari Chauhan Jayanti 2025 Poem, Jivan Parichay, Books: सुभद्रा कुमारी चौहान जयंती: वीर रस की कवयित्री को नमन

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Subhadra Kumari Chauhan Jayanti 2025 Poem, Jivan Parichay, Books

Subhadra Kumari Chauhan Jayanti 2025 Poem, Jivan Parichay, Books: ये पंक्तियाँ सुनते ही हर भारतीय के मन में एक ही नाम गूंजता है – सुभद्रा कुमारी चौहान। 16 अगस्त 1904 को जन्मी यह ओजस्वी कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी, न केवल हिंदी साहित्य का गौरव थीं, बल्कि उन्होंने अपनी कलम से आजादी की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। सुभद्रा कुमारी चौहान जयंती 2025 के अवसर पर, हम उनकी उसी अतुलनीय विरासत और उनके जीवन के अनछुए पहलुओं को याद करते हैं।

“सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी…”

यह जयंती सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि उन मूल्यों का स्मरण है, जिन्हें सुभद्रा जी ने अपने जीवन में जिया। उनके शब्दों में वीर रस का ऐसा प्रवाह था, जो सोई हुई चेतना को जगाने की शक्ति रखता था। उन्होंने 1923 में भारत की पहली महिला सत्याग्रही के रूप में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया, जो उनके अदम्य साहस का प्रमाण है।

कौन थीं सुभद्रा कुमारी चौहान? | Subhadra Kumari Chauhan Ka Jiavn Parichay

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास निहालपुर गाँव में हुआ था। बचपन से ही उनकी रुचि कविता लिखने में थी। मात्र 9 साल की उम्र में उनकी पहली कविता ‘नीम’ प्रकाशित हुई थी। यह दिखाता है कि उनकी प्रतिभा कितनी कम उम्र में ही प्रस्फुटित हो गई थी। उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता ‘झांसी की रानी’ आज भी स्कूली बच्चों से लेकर बड़ों तक को कंठस्थ है।

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उनकी कविताएं केवल वीर रस तक सीमित नहीं थीं। उन्होंने सामाजिक चेतना, वात्सल्य और प्रकृति पर भी कलम चलाई। ‘यह कदंब का पेड़’ और ‘खिलौनेवाला’ जैसी कविताएं उनकी संवेदनशीलता और बाल-मन की गहरी समझ को दर्शाती हैं।

Subhadra Kumari Chauhan Books in Hindi

Subhadra Kumari Chauhan Books: कहानी संग्रह

  • बिखरे मोती-१९३२
  • उन्मादिनी-१९३४
  • सीधे-साधे चित्र-१९४७
  • सीधे-साधे चित्र-१९८३ (पूर्व प्रकाशित एवं संकलित-असंकलित समस्त कहानियों का संग्रह; हंस प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित।)

Subhadra Kumari Chauhan Books: कविता संग्रह

  1. मुकुल
  2. त्रिधारा
  3. मुकुल तथा अन्य कविताएँ– (बाल कविताओं को छोड़कर पूर्व प्रकाशित एवं संकलित-असंकलित समस्त कविताओं का संग्रह; हंस प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित।)
  4. प्रसिद्ध कविताएं– स्वदेश के प्रति, झंडे की इज्जत में, झांसी की रानी, सभा का खेल, बोल उठी बिटिया मेरी, वीरों का कैसा हो बसंत, जलियांवाला बाग में बसंत इत्यादि।

Subhadra Kumari Chauhan Books: बाल-साहित्य

  • झाँसी की रानी
  • कदम्ब का पेड़
  • सभा का खेल

Subhadra Kumari Chauhan Jhansi ki Rani Peom in Hindi

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Credit: hindwi.org

सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की क़ीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,

चमक उठी सन् सत्तावन में
वह तलवार पुरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

कानपूर के नाना की मुँहबोली बहन ‘छबीली’ थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,

नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी,

वीर शिवाजी की गाथाएँ
उसको याद ज़बानी थीं।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नक़ली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना ख़ूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार,

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी
भी आराध्य भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,

राजमहल में बजी बधाई ख़ुशियाँ छाईं झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई झाँसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया,
शिव से मिली भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,

तीर चलानेवाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाईं,
रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आई,

निःसंतान मरे राजाजी
रानी शोक-समानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया,

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा
झाँसी हुई बिरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

अनुनय-विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,

डलहौज़ी ने पैर पसारे अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया,

रानी दासी बनी, बनी यह
दासी अब महरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात,
क़ैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,

उदैपूर, तंजोर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात,
जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात,

बंगाले, मद्रास आदि की
भी तो यही कहानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

रानी रोईं रनिवासों में बेगम ग़म से थीं बेज़ार
उनके गहने-कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे-आम नीलाम छापते थे अँग्रेज़ों के अख़बार,
‘नागपूर के जेवर ले लो’ ‘लखनऊ के लो नौलख हार’,

यों पर्दे की इज़्ज़त पर—
देशी के हाथ बिकानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

कुटियों में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था, अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीलीनेरण-चंडी का कर दिया प्रकट आह्वान,

हुआ यज्ञ प्रारंभ उन्हें तो
सोयी ज्योति जगानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थीं,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपूर, कोल्हापुर में भी
कुछ हलचल उकसानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

इस स्वतंत्रता-महायज्ञ में कई वीरवर आए काम
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम,

अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास-गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम,

लेकिन आज ज़़ुर्म कहलाती
उनकी जो क़ुर्बानी थी।

बुंदेले हरबालों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

इनकी गाथा छोड़ चलें हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,

लेफ़्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में,

ज़ख्मी होकर वॉकर भागा,
उसे अजब हैरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,

यमुना-तट पर अँग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार,

अँग्रेज़ों के मित्र सिंधिया
ने छोड़ी रजधानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

विजय मिली, पर अँँग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सन्मुख था, उसने मुँह की खाई थी,

काना और मंदरा सखियाँ रानी के सँग आई थीं,
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी,

पर, पीछे ह्यूरोज़ आ गया,
हाय! घिरी अब रानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार,
किंतु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गए सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार,

घायल होकर गिरी सिंहनी
उसे वीर-गति पानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज़ से तेज़, तेज़ की वह सच्ची अधिकारी थी,

अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई
हमको जो सीख सिखानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,

होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी,

तेरा स्मारक तू ही होगी,
तू ख़ुद अमिट निशानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।

ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी॥

स्वतंत्रता संग्राम में सुभद्रा जी का योगदान

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सुभद्रा जी ने सिर्फ कलम से ही नहीं, बल्कि सक्रिय रूप से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भी देश की सेवा की।

  • वह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं।
  • कई बार जेल गईं और जेल में रहते हुए भी कविताएं लिखती रहीं।
  • उन्होंने अपनी कहानियों और कविताओं के माध्यम से लोगों को एकजुट होने और देश के लिए लड़ने का संदेश दिया।

सुभद्रा कुमारी चौहान की साहित्य में विशिष्ट पहचान

सुभद्रा कुमारी चौहान की लेखन शैली की कुछ खास बातें:

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  • सरलता और ओज: उनकी भाषा सरल थी, लेकिन उसमें ओज और जोश की कमी नहीं थी। उनकी कविताएं सीधे दिल को छूती थीं।
  • राष्ट्रीय चेतना: उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल किया। उनकी कविताओं ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए लोगों को प्रेरित किया।
  • सटीक चित्रण: ‘झांसी की रानी’ में रानी लक्ष्मीबाई के जीवन का जो सटीक और भावनात्मक चित्रण उन्होंने किया, वह अद्वितीय है।

सुभद्रा कुमारी चौहान जयंती 2025 कैसे मनाएं? | How to Celebrate Subhadra Kumari Chauhan Jayanti 2025

इस सुभद्रा कुमारी चौहान जयंती 2025 पर आप भी उन्हें श्रद्धांजलि दे सकते हैं:

  • उनकी प्रसिद्ध कविताएं पढ़ें और सुनाएं।
  • बच्चों को उनके जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के बारे में बताएं।
  • अपने स्कूल या कॉलेज में एक कविता पाठ प्रतियोगिता का आयोजन करें।
  • सोशल मीडिया पर उनकी कविताओं की पंक्तियाँ साझा करें।

निष्कर्ष: एक अमर आवाज

सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन हमें सिखाता है कि कलम में तलवार से भी अधिक ताकत होती है। उनकी कविताएं आज भी हमें अन्याय के खिलाफ खड़े होने और अपने देश से प्रेम करने की प्रेरणा देती हैं। इस सुभद्रा कुमारी चौहान जयंती 2025 पर, आइए हम उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लें और उनकी कविताओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाएं।

क्या आप उनकी किसी पसंदीदा कविता को याद करते हैं? नीचे टिप्पणी में साझा करें!

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