क्या आप भी अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से ऊब चुके हैं? क्या आप एक ऐसी फिल्म की तलाश में हैं जो आपको हंसाए, सोचने पर मजबूर करे और एक ताज़ा एहसास दे? तो ‘परन्थु पू’ (Paranthu Po) आपके लिए ही बनी है। यह सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि ज़िंदगी की भागदौड़ से दूर, एक पिता और उसके बेटे की यात्रा की कहानी है जो आपको भी अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचने पर मजबूर कर देगी।
कहानी जो दिलों को छू जाए
‘परन्थु पू’ (Paranthu Po) की कहानी गोकुल (शिवा) और उसके 8 साल के बेटे अनबू (मिथुल रयान) के इर्द-गिर्द घूमती है। गोकुल और उसकी पत्नी ग्लोरी (ग्रेस एंटनी) शहरी ज़िंदगी की भागदौड़ में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास अपने बेटे के लिए समय नहीं है। वे चाहते हैं कि उनका बेटा सबसे अच्छे स्कूल में पढ़े और उसे सभी सुविधाएं मिलें, लेकिन इस प्रक्रिया में वे उसे अकेला छोड़ देते हैं। एक दिन, अनबू अपने पिता को एक अनचाही रोड ट्रिप पर ले जाता है, जो उनकी ज़िंदगी को पूरी तरह से बदल देती है।
यह यात्रा सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने के बारे में नहीं है, बल्कि यह खुद को खोजने की यात्रा है। रास्ते में, वे कई दिलचस्प किरदारों से मिलते हैं जो उन्हें ज़िंदगी के छोटे-छोटे पलों का महत्व सिखाते हैं।
कलाकारों का शानदार प्रदर्शन
- शिवा (Shiva): आमतौर पर अपनी कॉमेडी भूमिकाओं के लिए जाने जाने वाले शिवा ने गोकुल के रूप में एक संवेदनशील पिता का किरदार निभाया है। उनका प्रदर्शन बहुत ही स्वाभाविक और प्रभावशाली है। उन्होंने एक ऐसे पिता की भावनाओं को बखूबी दर्शाया है जो अपने बेटे के लिए सब कुछ करना चाहता है, लेकिन ज़िंदगी की मजबूरियों में फंसा हुआ है।
- मिथुल रयान (Mithul Ryan): 8 साल के मिथुल रयान ने अनबू के किरदार में जान डाल दी है। उनकी मासूमियत और एनर्जी पूरे फिल्म में छाई रहती है। उनके बिना यह फिल्म अधूरी है।
- ग्रेस एंटनी (Grace Antony) और अन्य कलाकार: ग्रेस एंटनी ने ग्लोरी की भूमिका में एक मल्टीटास्किंग मां की भूमिका निभाई है। फिल्म में अंजलि और अजू वर्गीस जैसे कलाकारों ने भी छोटे-छोटे किरदारों में बेहतरीन काम किया है, जो कहानी को और भी समृद्ध बनाते हैं।
परन्थु पू (Paranthu Po) क्यों है खास?
- सरल और सार्थक कहानी: फिल्म की सबसे बड़ी खासियत इसकी सरलता है। यह बिना किसी भारी-भरकम डायलॉग या एक्शन के एक गहरा संदेश देती है।
- हास्य और भावना का मिश्रण: फिल्म में हास्य और भावना का अद्भुत मिश्रण है। शिवा की कॉमेडी टाइमिंग और पिता-पुत्र के बीच के भावनात्मक पल आपको हंसाते और रुलाते हैं।
- खूबसूरत सिनेमैटोग्राफी: एन.के. एकंबरम की सिनेमैटोग्राफी शानदार है। प्राकृतिक दृश्य और रोड ट्रिप के शॉट्स आंखों को सुकून देते हैं।
- संगीत: संतोष धयानधि का संगीत फिल्म की आत्मा है। गानों के बोल और धुन कहानी के साथ पूरी तरह से मेल खाते हैं।
आज के समय में प्रासंगिकता
आज के आधुनिक दौर में, जहाँ माता-पिता और बच्चे डिजिटल दुनिया में खोए हुए हैं, यह फिल्म एक महत्वपूर्ण संदेश देती है। एक हालिया सर्वे के अनुसार, 60% से अधिक माता-पिता मानते हैं कि वे अपने बच्चों के साथ पर्याप्त समय नहीं बिता पाते। ‘परन्थु पू’ (Paranthu Po) हमें याद दिलाती है कि महंगी चीज़ें खरीदने से ज़्यादा ज़रूरी है अपने बच्चों के साथ समय बिताना। यह फिल्म एक धीमी और शांत ज़िंदगी जीने का महत्व सिखाती है।
मेरा व्यक्तिगत विचार
निर्देशक राम ने इस फिल्म के साथ एक नया प्रयोग किया है। उनकी पिछली फिल्में ‘तरमणि’ और ‘पेरंबू’ की तरह यह फिल्म गहन नहीं है, बल्कि यह एक हल्की-फुल्की और आनंददायक यात्रा है। यह फिल्म एक “जेंटल हग” की तरह महसूस होती है, जो आपको सुकून और खुशी देती है।
निष्कर्ष: ‘परन्थु पू’ (Paranthu Po) एक अवश्य देखी जाने वाली फिल्म है
कुल मिलाकर, परन्थु पू (Paranthu Po) एक दिल को छू लेने वाली और मनोरंजक फिल्म है। यह हर उम्र के दर्शकों के लिए एक ज़रूरी वॉच है। यदि आप एक ऐसी फिल्म की तलाश में हैं जो आपको खुशी दे और ज़िंदगी के बारे में सोचने पर मजबूर करे, तो इस फिल्म को देखना न भूलें।